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________________ जीव और जीव की कर्मजनित अवस्थायें को सिद्ध करने के लिए अन्य कोई यथार्थ सत्ता या सत्य नहीं है । ' अन्य भारतीय दर्शनों में जिस चेतन सत्ता को ब्रह्म, आत्मा या पुरुष कहा गया है, उसी चेतन सत्ताको जैन दर्शनमें जीव कहा जाता है। जीव और आत्मा एक ही सत्ता के दो भिन्न-भिन्न नाम हैं । यद्यपि चेतन सत्ताकी दृष्टि से जैन मान्य जीव की चार्वाकको छोड़ कर शेषसभी दर्शनों से समानता है, परन्तु जैनों ने जीव की जो अन्य विशेषताएं मानी हैं, वे विशेषतायें अन्य दर्शनोंसे किसी न किसी रूप में विभिन्नता रखती हैं । २. जीव की आठ विशेषतायें जैन दर्शन के अनुसार जीव की आठ विशेषतायें हैं, उन्हें नेमिचन्द्राचार्यने निम्न गाथा में निर्दिष्ट किया है - जीव उवओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो । भोत्ता संसारत्थो सिद्धो सो विस्ससोढगई ॥ * जीव चैतन्यमय, उपयोगमय, अमूर्त, कर्त्ता और भोक्ता, देह परिमाण, संसारी, सिद्ध और स्वभावसे ही ऊर्ध्व गमन करने वाला है । जीवकी इन आठ विशेषताओं का निर्देशन कुन्दकुन्दाचार्य ने भी किया है। आगे इन विशेषताओं पर पृथक्-पृथक् विचार करना इष्ट है । १. जीव का चेतनत्व गुण चेतन जीव का वह गुण है, जो सभी अवस्थाओंमें जीवके साथ रहता है । राजवार्तिक में कहा गया है कि “जीवस्वभावश्चेतना"" अर्थात् चेतना जीव का स्वभाव है । यह सामान्य रूप से सदा एक प्रकारकी ही होती है, परन्तु विशेष रूप से अर्थात् पर्याय दृष्टिसे दो प्रकारकी होती है - शुद्धचेतना और अशुद्धचेतना । ज्ञानी और वीतरागी जीवोंका केवल जानने रूप जो भाव होता है, वह १. For it there is neither any reality nor any truth. भार्गव दयानन्द, जैन एथिक्स, पृ० ३९ २. सिन्हा हरेन्द्र प्रसाद, भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ० १३८ ३. द्रव्यसंग्रह, गाथा २ ४. पंचास्तिकाय, गाथा २७ ५. राजवार्तिक, पृ० २६ ६. पंचाध्यायी, उत्तरार्ध, श्लोक १९२ Jain Education International 2010_03 ३५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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