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________________ वस्तु स्वभाव अनाद्यनिधने द्रव्ये स्व पर्यायाः प्रतिक्षणम् | उन्मज्जन्ति निमज्जन्ति जलकल्लोलवज्जले || ' पर्यायकी बौद्धमान्य क्षणिकवादसे तुलना जैनमान्य पर्यायका स्वरूप बौद्धमान्य क्षणिकवादसे भिन्न है । यद्यपि बौद्धोंके क्षणिकवादके अनुसार प्रत्येक वस्तु क्षण-क्षण में बदल रही है और जैन मान्य पर्याय भी गुणों के परिणमनके फलस्वरूप ही उत्पन्न हाती है, परन्तु मौलिक रूपमें दोनों का स्वरूप एक नहीं है। बौद्धोंकी परिवर्तनशीलता किसी स्थायित्व के आधार पर नहीं है । डॉ० हिरियन्ना के शब्दों में- “" निरन्तर परिवर्तन हो रहा है, परन्तु ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसका परिवर्तन हो रहा है, दूसरे शब्दों में बुद्धने केवल चेतनाकी अवस्था को स्वीकार किया है, चेतना को नहीं । ९. दयानन्द भार्गव ने भी बौद्ध तथा जैन के क्षणिकवाद और पर्यायमें अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा है - बौद्धोंके अनुसार कुछ भी स्थायी नहीं है, प्रत्येक वस्तु परिवर्तनमें से गुजर रही है । और जैन मान्य पर्यायमें ऐसा परिवर्तन है जिसमें पूर्वावस्थाका विलय और उत्तरावस्थाका प्रागट्य हो रहा है, परन्तु द्रव्य निरन्तर दोनों अवस्थाओंमें स्थायी है ।" जैसे देवदत्त- बालक, युवा और वृद्धसभी अवस्थाओंमें देवदत्त ही है। आत्मा मनुष्यके रूपमें हो या पशु पक्षीके रूपमें उसमें चेतनत्वादि गुणकी स्थिति सदैव रहती है। इसी प्रकार पुद्गल चाहे सूक्ष्म हो या स्थूल द्वयणुक हो या त्रयणुक अनेक अवस्थाओंमें भी पुद्गलत्वको नहीं छोड़ता । " इस प्रकार जैन मान्य पर्याय क्षणिकवादसे भिन्न अर्थको ग्रहण करती है । १०. पर्याय के भेद पर्यायमें होने वाला परिणमन स्थूल और सूक्ष्म के भेद से दो प्रकार का होता है । स्थूल परिणमनको जैन सिद्धान्तमें व्यंजन पर्याय कहा जाता है और १. आलाप पद्धति, श्लोक २, पृ० ४२ २. हिरियन्ना, भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ० १४३ ३. हिरियन्ना, भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ० १४० ४. ५. २७. There is nothing permanent in this universe. जैन एथिक्स, पृ० ५१ Change means disappearance of previous state of Modification and appearance of a new one with continuity of the same substratum, जैन एथिक्स, पृ० ५२ ६. वसुनन्दि श्रावकाचार, गाथा २५ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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