________________
खाड़
लता
दारू
कम बन्धके कारण तथा भदप्रभेद
१५५ पुण्य और पाप प्रकृतियों
चार घातिया कर्मोंकी सैंतालीस प्रकृतियाँ पाप रूप होती हैं। वेदनीय, आयु, नाम, और गोत्र, इन चार अधातिया कर्मोकी एक सौ एक प्रकृतियोंका विभाजन पुण्य और पाप दोनोंमें किया जा सकता है, इन्हें प्रशस्त और अप्रशस्त भी कहा जाता है। पुण्य प्रकृतियों के अनुभागकी उपमा गुड़, खांड, शक्कर और अमृतसे की गई है, जो उत्तरोत्तर अधिक मिष्टताकी सूचक हैं। पुण्य प्रकृतियोंकी फलदान शक्ति भी उत्तरोत्तर अधिक होती जाती है। पाप प्रकृतियोंके अनुभाग की उपमा नीम, कॉजी, विष और हलाहलसे दी गई है। जो उत्तरोत्तर अधिक कटुताकी सूचक हैं | पाप प्रकृतियोंकी फलदान शक्ति भी उत्तरोत्तर अधिक होती जाती है। इन दृष्टान्तोंको निम्न सारिणी द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैप्रकृतियाँ उत्तरोत्तर अधिक अनुभाग के सूचक दृष्टान्त पुण्य प्रकृतियाँ गुड़
शक्कर अमृत पाप प्रकृतियाँ नीम कॉजी विष हलाहल घातिया प्रकृतियाँ
अस्थि शैल देशघाती लता
-
- सर्वघाती
-
अस्थि शैल घातिया अघातिया समस्त एक सौ अडतालीस प्रकृतियोंको पुण्य पाप अथवा प्रशस्त अप्रशस्तकी दृष्टिसे अग्रिम तालिकामें नाम निर्देशन किया गया है। ___ नोट: संकेतों के पूरे नाम प्रकृति परिचय में दिये जा चुके हैं।
पुण्य पाप कर्म प्रकृतियों की तालिका ___ नाम भेद पुण्य प्रकृतियाँ भेद पाप प्रकृतियों क. घातिया १. ज्ञानावरणीय
मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय केवल २. दर्शनावरणीय
चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला,
स्तयानगृद्ध ३. अन्तराय
- - ५ दान, लाभ, भोग, उपभोग , वीर्य १. मोहनीय२ .. १. “शुभाघातिकर्म संबंधिनी पुर्नगुडखण्डशर्करामृतरूपेण चतुर्धा भवति” द्रव्यसंग्रह, ब्रह्मदेव टीका,
गाथा ३३ १. “अशुभाघातिकर्म संबंधिनी निम्बकांनीरविष हलाहल रूपेण चतुर्धा भवति" द्रव्यसंग्रह, ब्रह्मदेव
टीका, गाथा ३३ 1. (क) गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा ४१-४४ (ख) तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय ८, सूत्र २५-२६
दारू
-
-
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org