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________________ १५४ जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययी विपाककी अपेक्षा १४८ कर्म प्रकृतियोंकी तालिका (७८) जीव विपाकी' (६२) पुद्गल विपाकी (४) क्षेत्र विपाकी' (४) भवविपाकी नरक गत्यानुपूर्वी तिर्यन्च गत्यानुपूर्वी मनुष्य गत्यानुपूर्वी देवगत्यानुपूर्वी नरकायु तिर्यन्चायु मनुष्यायु देवायु ८ स्पर्श ५ज्ञानावरणीय ५शरीर ९ दर्शनावरणीय ५ संघात २८ मोहनीय ६ संस्थान ५अन्तराय ६ संहनन (ये ४७घातिया हैं) ३ अंगोपांग २ गोत्र ५ वर्ण २ विहायोगति २ गन्ध ४ गति ५रस ५जाति १ तीर्थंकर १ अगुरूलघु १त्रस १ उपघात १स्थावर १ परघात १ यश:कीर्ति १ आतप १ अयश:कीर्ति १ उद्योत १बादर १ निर्माण १सूक्ष्म १ प्रत्येक शरीर १ पर्याप्त १ साधारण शरीर १ अपर्याप्त १ स्थिर १ आदेय १ अस्थिर .१ अनादेय १ शुभ १ सुस्वर १ अशुभ १ दुस्वर ५बन्धन १ सुभग १श्वासोच्छवास १. गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा ४९-५१ २. वही, गाथा ४७ ३. वही, गाथा ४८ ४. वही, गाथा ४८ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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