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जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययी
विपाककी अपेक्षा १४८ कर्म प्रकृतियोंकी तालिका
(७८) जीव विपाकी'
(६२) पुद्गल विपाकी
(४) क्षेत्र विपाकी'
(४) भवविपाकी
नरक गत्यानुपूर्वी तिर्यन्च गत्यानुपूर्वी मनुष्य गत्यानुपूर्वी देवगत्यानुपूर्वी
नरकायु तिर्यन्चायु मनुष्यायु
देवायु
८ स्पर्श
५ज्ञानावरणीय ५शरीर ९ दर्शनावरणीय ५ संघात २८ मोहनीय
६ संस्थान ५अन्तराय
६ संहनन (ये ४७घातिया हैं) ३ अंगोपांग २ गोत्र
५ वर्ण २ विहायोगति २ गन्ध ४ गति
५रस ५जाति १ तीर्थंकर
१ अगुरूलघु १त्रस
१ उपघात १स्थावर
१ परघात १ यश:कीर्ति
१ आतप १ अयश:कीर्ति १ उद्योत १बादर
१ निर्माण १सूक्ष्म
१ प्रत्येक शरीर १ पर्याप्त
१ साधारण शरीर १ अपर्याप्त
१ स्थिर १ आदेय
१ अस्थिर .१ अनादेय
१ शुभ १ सुस्वर
१ अशुभ १ दुस्वर
५बन्धन १ सुभग १श्वासोच्छवास १. गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा ४९-५१ २. वही, गाथा ४७ ३. वही, गाथा ४८ ४. वही, गाथा ४८
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