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________________ १३८ जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययन २. नोकषाय नोकषायको अकषाय भी कहा जाता है । सर्वार्थसिद्धिमें पूज्यपाद जी ने नोकषायका लक्षण करते हुए कहा है – “इषदर्थे नम्, प्रयोगादीषत्कषायो ऽकषाय।"१ किंचित् अर्थमें न का प्रयोग होनेसे ईषत् कषायको अकषाय या नोकषाय कहाजाता है। गोम्मटसारमें कहा गया है-- "ईषत्कषाया: नोकषायास्तान् वेद्यन्ति वेद्यन्ते एभिरिति नोकषायवेदनीयानि नवविधानि ।”२ नोकषायके नवभेद हैं। भांड़ आदि की चेष्टाको देखकर हंसी उत्पन्न कराने वाला, हास्य मोहनीय कर्म कहलाता है। देश, धन, स्त्री आदि में रति अर्थात् प्रीति उत्पन्न कराने वाला रति मोहनीय कर्म है । देश, परिवार, स्त्री आदिमें अप्रीति अर्थात् उद्वेग (शास्त्रीय भाषामें जिसे द्वेष कहते हैं) उत्पन्न कराने वाला "अरति मोहनीय कर्म है । इष्ट वियोग और अनिष्ट संयोग होने से दु:ख देने वाला, शोक मोहनीय कर्म है। भयके साधन उपस्थित होनेपर घबराहट अथवा डर उत्पन्न कराने वाला, भय मोहनीय कर्म है। मांस, विष्ठा आदि वीभत्स पदार्थों को देखकर घृणा उत्पन्न कराने वाला जुगुप्सा मोहनीय है । पुरूषके साथ रमने की इच्छा उत्पन्न करने वाला स्त्रीवेद मोहनीय है, स्त्रीके साथ रमने की इच्छा उत्पन्न करने वाला पुरूपवेद मोहनीय है । स्त्री और पुरूष दोनों के साथ रमणकी इच्छा उत्पन्न करने वाला नपुंसक वेद मोहनीय है। ५. आयु कर्म जीवितव्य कालमें जो कर्म जीवको नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवमें से किसी विवक्षित शरीरमें निश्चित अवधि तक रोके रखता है, उस भवधारणके निमित्त कर्मको आयु कर्म कहते हैं। आयुकर्मका उदय जीवको उसी प्रकार रोके रखता है, जिस प्रकार एक विशेष प्रकारकी सांकल या काष्ठ का फन्दा अपने छिद्रमें पग रखनेवाले व्यक्तिको रोके रखता है, आयु कर्म जीवको पूर्व भव छोड़कर अग्रिम भव धारण नहीं करने देता।' आयु दो प्रकारकी होती है-भुज्यमान आयु और बध्यमान आयु। वर्तमान समयमें १. सर्वार्थसिद्धि, पृ०३८५ (क) गोम्मटसार कर्मकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका, गाथा ३३ . (ख) कर्मग्रन्थ, भाग प्रथम, गाथा २१, २२ पृ०५२-५५ ३. भवधारणनिमित्तमायु: "प्रवचनसार, तत्त्वप्रदीपिका, गाथा १४६ "निगडवदगत्यन्तरगमननिवारणता" वृहद द्रव्य संग्रह, ब्रहादेव टीका गाथा ३३ ه ه Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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