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________________ तदुक्खे ण (तदुक्ख) 3/1 =उस दुःख के कारण मोहमहागह-गहिरो [(मोह)-(महा)-(गह)-(गह) =मोहरूपी महा-ग्रहों से भूकृ 1/1] पकड़ा हुआ महीयले (महीयल) 7/1 =पृथ्वी पर हिण्डइ (हिण्ड) व 3/1 सक =भ्रमण करता है (करने लगा) चउत्थो (चउत्थ) 1/1 वि -चौथा तत्थेव (तत्थ)+ (एव) ]तत्थ (क्रिविन), =वहाँ, ही एव (अ) ठियो (ठिन) भूकृ 1/1 अनि -ठहरा (त) 2/1 सवि -उस ठाणं (ठाण) 2/1 =स्थान की रक्खंतो (रक्ख) वकृ 1/1 =रक्षा करते हुए पइदिणं [पइ(अ)=प्रति-(दिण) 1/1] ___-प्रतिदिन एगमन्नपिंड [(एग)+(अन्न)-पिंड)] =एक अन्य पिंड को [(एग)-(अन्न) -(पिंड) 2/1] (मुन) वकृ 1/1 = छोड़ते हुए कालं (काल) 211 -काल गमेइ (गम) व 3/1 सक =बिताता है(बिताने लगा) मुअंतो प्रह त इनो नरो महीयल। अव्यय (तइन) 1/1 वि (नर) 1/1 (महीयल) 2/1 =अब -तीसरा मनुष्य =पृथ्वी पर नोट-1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग भी पाया जाता है। प्राकृत अभ्यास सौरभ । [ 171 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002575
Book TitlePrakrit Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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