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________________ संगामे जायमाणे बहुजणक्खयं दळूण अग्गिम्मि पविट्ठा सुमइकन्ना तीए सम णिविडणेहेण एगो (संगाम) 7/1 (जा→जाय) व 7/1 [(बहु)-(जण)-(क्खय) 2/1] संकृ अनि (अग्गि) 7/1 (पविट्ठ) भूकृ 1/1 अनि [(सुमइ)-(कन्ना ) 1/1] (ता) 3/1 स अव्यय [(णिविड) वि-(णेह) 3/1] (एग) 1/1 वि (वर) 1/1 --संग्राम में = उत्पन्न होते हुए बहुत मनुष्यों के क्षय को =देखकर ==आग में =प्रविष्ट हुई =सुमति कन्या =उसके =साथ =घनिष्ठ स्नेह के कारण =एक वरो वर वि अव्यय -भी =प्रविष्ट हुआ पविट्ठो एगो -एक अट्ठीणि मंगप्पवाहे खिविलं गयो (पविठ्ठ) भूक 1/1 अनि (एग) 1/1 वि (अट्ठि) 2/2 [ (गंगा)-(प्पवाह) 7/1] (खिव) हे (ग) भूक 1/1 अनि (एग) 1/1 वि [(चित्रा)-(रक्ख) 2/1) [(तत्थ)+ (एव)] तत्थ (क्रिवित्र), एव-अव्यय [(जल)-(पूर) 7/1] (खिव) संकृ =अस्थियों को =गंगा के प्रवाह में = डालने के लिए =गया =एक =चिता की राख को -वहां ही एगो चिप्रारक्खं तत्थेव जलधारा में जलपूरे खिविऊण -डालकर 170 ] [ प्राकृत अभ्यास सौरभ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002575
Book TitlePrakrit Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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