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________________ 25 भारतीय वाङमय में योगसाधना और योगबिन्दु ११. बोधिचर्यावतार इसकी भी गणना नववैपुल्यों में की जाती है। इस कृति के लेखक ७वीं शदी के आचार्य शान्तिदेव हैं। सन् १६०२ में इसका पहला रूसी संस्करण निकला था। वारनेट ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया था। इसी का सन् १६०२ में ही लावाले पुंसे ने पेरिस से फ्रेंच अनुवाद भी प्रकाशित किया था। इसी संस्करण में प्रज्ञाकरमति द्वारा इस पर कृत पञ्जिका ठीका भी प्रकाशित की गई थी। इस ग्रन्थ पर इटालियन और जर्मन अनुवाद भी मिलते हैं। ... यह महायान का आचार ग्रन्थ है। बोधिसत्व के आदर्श के जानने के लिए यह अनुपम रचना है। इसमें १६ परिच्छेद हैं । बोधिसत्व का स्वरूप उनकी चर्चा तथा उनकी विनय शीलता आदि का बहुत ही सांगोपांग वर्णन किया गया है। बोधि का अर्थ 'निर्मलज्ञान, अथवा प्रज्ञा' है। यही बोधिसत्व का एक मात्र लक्ष्य है । बोधिसत्व परार्थी होता है, दूसरों को कष्टों में देखकर उसका हदय करुणा से आप्लावित हो जाता है। वह उमके दुःखों को भोगने के लिए नरक में भी रहना पसन्द करता है। इन सबके पीछे उनका एक मात्र उद्देश्य होता है, सर्वज्ञत्व की उपलब्धि करना, जो योग साधना के बिना प्राप्त नहीं हो सकती। शन्यवाद के रहस्य को जानने के लिए यह ग्रन्थ विशेष महत्त्व रखता है। इसका देव नागरी संस्करण भी उपलब्ध है। १२. शिक्षासमुच्चय यह आचार्य शांतिदेव की दूसरी रचना है। इसका ८१६-८३८ ई० के बीच तिब्बती अनुवाद किया गया था। इसका सन् १८६७ में रूसी संस्करण भी निकला था। इसके अतिरिक्त एक अन्य संस्करण १६०२ और १९२२ में अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया गया था। इस ग्रन्थ में १६ परिच्छेद और २६ कारिकाएं है । इसमें ऐसे भी कतिपय ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है जो आज लुप्त प्राय: हैं। बोधिसत्व की ध्यान साधना पर इसमें विस्तार से प्रकाश डाला गया है। महायान दर्शन के अध्ययन के लिए यह नितान्त भजनीय है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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