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योगविन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
मैत्रेयी एवं श्वेताश्वतर आदि उपनिषदों में तो स्पष्ट और विकसित रूप में योग की भूमिका प्रस्तुत हुई है । यहां तक कि योग योगोचित्त स्थान, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और कुण्डलिनी आदि का विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है । जिनमें केवल योग का ही वर्णन हुआ है, ऐसे उपषिदों की संख्या २१ है । 1
२ - पुराणों में
भागवतपुराण, स्कन्धपुराण, गरुड़पुराण और पद्मपुराण आदि में कई स्थलों पर योग की चर्चा हुई है । भागवतपुराण में तो स्पष्ट रूप से अष्टांग योग की व्याख्या, महिमा, तथा अनेक लब्धियों का वर्णन मिलता है । " महाभारत के विभिन्न पर्वों में योग के विभिन्न अंगों का विवेचन एवं विश्लेषण उपलब्ध होता है ।
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३ – गीता में
योग की व्यवस्थित एवं सांगोपांग भूमिका प्रस्तुत करने में श्रीमद् भगवत् गीता का अपना विशिष्ट स्थान है । गीता में विभिन्न योग पद्धतियों का संग्रह दिखाई पड़ता है, जिनका प्रमुख उद्देश्य एक है । इसमें कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और समत्वयोग आदि का विशेष उल्लेख है ।
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३.
(१) योगराजोपनिषद् (२) अद्वयतारकोपनिषद् (३) अमृतनादोपनिषद् (४) अमृतविन्दूपनिषद् (५) मुक्तिकोपनिषद् (६) तेजोबिन्दूपनिषद् (७) त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् (८) दर्शनोपनिषद् ( 8 ) ध्यानबिन्दुपनिषद् (१०) नादबिन्दूपनिषद् ( ११ ) पाशुपत ब्राह्मणोपनिषद् (१२) मण्डल - ब्राह्मणोपनिषद् (१३) महावाक्योपनिषद् (१४) योगकुण्डल्योपनिषद् (१५) योगचूडामण्युपनिषद् (१६) योगतत्त्व - उपनिषद् (१७) योगशिखोपनिषद् (१८) वाराहोपनिषद् (१९) शाण्डिल्योपनिषद् (२०) ब्रह्मविद्यो पनिषद् (२१) हंसोपनिषद् |
भागवतपुराण, ३.२८ ; ११.१५ ; १६-२०
विस्तृत अध्ययन के लिए दे० - महाभारत शान्तिपर्व, अनुशासनपर्व एवं भीष्मपर्व |
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