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भारतीय वाङमय में योगसाधना और योगविन्दु .
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उपलब्ध योग सम्बन्धी प्रमुख ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है जिससे योग की परम्परा और उसके विकास क्रम का परिचय प्राप्त हो सकेगा। १---वैदिक वाङमय में
जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है इस परम्परा के प्रमुख ग्रन्थ वेद हैं। वेदों में भी सब से प्राचीन ऋग्वेद है। फिर क्रमशः यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद आते हैं। तत्पश्चात् उपनिषद्, पुराण, महाभारत, गीता और इसके बाद वाकी सभी स्वतन्त्र योग परक ग्रन्थ समाहित होते हैं।
१-ऋग्वेद . इस विश्वविख्यात वेद ग्रन्थ में बीज रूप में अनेक योग परक मन्त्र मिलते हैं। ऐसे ही यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी यत्र-तत्र योग सम्बन्धी उल्लेख प्राप्त होते हैं। वहां योगाभ्यास तथा योग द्वारा प्राप्त विवेकख्याति के विए प्रार्थना की गयी है कि ईश्वर की कृपा से हमें योगसिद्धि, विवेकख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा प्राप्त हो । वह ईश्वर अणिमा आदि सिद्धियों के साथ हमारी और आवे ।
वैदिक साहित्य में ही उपनिपदों का भी वैशिष्ट्य सर्व विख्यात है। यों तो उपनिषदों में योग शब्द, 'आध्यात्मिक' अर्थ में मिलता हैं। फिर भी विभिन्न उपनिषदों में योग एवं योग साधना का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिसमें जगत् जीव और परमात्मा सम्बन्धी बिखरे हुए विचारों में योग की चर्चाएं अनुस्यूत हैं।'
१. स धानो योग आभवत् । ऋग्वेव १.५.३
(ख) स धीना योगमिन्वति । वही १.१८.७
(ग) कदा योगो वाजिनो रास् भस्य । वही, १.४.६ २. सामवेद, ३०१.२१०. ३; अथर्ववेद २०. ६६. १ ३. (क) अध्यात्मयोगाधिगमेन देवं मत्वा धीरो हर्षशोको जहाति ।
कठोपनिषद्, १. २. २१ (ख) तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरानिन्द्रियधारणाम् ।
अप्रमत्तस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययौ । वही, २.३.११ ४. तैत्तिरीयोपनिषद्, २.४
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