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________________ भारतीय वाङमय में योगसाधना और योगविन्दु 13 गीता में निषेधात्मक और विधेयात्मक दोनों ही प्रकार के योगों की चर्चा हुई है जैसे कर्मफल की इच्छा का न होना, विषयों के प्रति आसक्त न होना, समत्वयोगः निष्कामता आदि। इस प्रकार गीता के अठारह अध्यायों में अठारह प्रकार के योगों का उल्लेख है जिनमें अनेकविध साधनाएं बतलाई गई हैं जैसे सभी कार्य भगवान् को अर्पण करना एवं अवस्थाओं में संतुष्टि: और मन को एकाग्र करना आदि। समभावयोग गीता के अनुसार विशेष प्रकार के कर्म करने की कुशलता, युक्ति अथवा चतुराई योग है।' जब आत्मा का आत्मा के द्वारा साक्षात्कार १. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुभ मा ते संगोस्त्वकर्मणि ॥ गीता, २.४७ तथा ४.२० २. योगस्थ कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्धपतिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ वही, २.४८ यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवजिता: । वही; ४.१६ (१) ज्ञानयोग ३.३; १३.२४ (२) भक्तियोग १४.२६ (३) आत्मयोग १०, ६८; ११.४७ (४) बुद्धियोग १०.१०,१८.५७ (५) सातत्ययोग १०.६ १२.१ (६) शरणागतियोग ६.३२,१८.६४ (५) नित्ययोग ६.२२ (८) ऐश्वरीय योग ६.५; ११.४ (8) अभ्यासयोग ८.८, १२.६ (१०) ध्यान योग १२.५२ (११) दुःखसंयोग-वियोग योग ६.२३ (१२) सन्यासयोग ६.२ ६.२८ (१३) ब्रह्मयोग ५.२१ (१४) यज्ञयोग ४.२८ (१५) आत्मसंयम योग' ४.२७ (१६) देवयोग ४.२५ (१७) कर्मयोग ३.३,५.२,१३.२४ (१८) समत्वयोग २,२८, ६.२६ ये तु सर्वाणि कर्माणि भयि संन्यस्य मत्परः । अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते ॥ गीता १,२७ ६. यत्रोपरमते चित्तं निरुद्ध योगसेक्या। यत्र वात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ॥ वही ६.२० बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । तस्माद्योगाय य र स्व योगः कर्मस् कौशलम् ॥ वही २.५० Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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