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________________ भारतीय वाङमय में योगसाधना और योगबिन्दु संयम के अर्थ में योग : उत्तराध्ययनसूत्र में अनेकशः 'योग' शब्द का प्रयोग किया गया है जैसे कि 'जोगव उवहाणं योगवान् तथा इसो सूत्र में कहा गया है कि वाहन को वहन करते हुए बैल जैसे अरण्य को लांघ जाता है वैसे ही योग को वहन करते हुए वह साधक मुनि संसाररूपी अरण्य को पार कर जाता है वाहणे वहमाणस्स कतारं अइवत्तई । जोए वहमाणस्स संसारो अइवत्तई ॥ यहां योग का अर्थ संयम है। सूत्रकृतांगसूत्र में भी 'जोगव' शब्द आता है जो संयम के अर्थ को बतलाता है जबकि स्थानांगसूत्र में 'जोगवाही' शब्द समाधि में स्थिर 'अनासक्त पुरुष' के लिए प्रयुक्त हुआ है। मन वचन काय के अर्थ में योग शब्द : उत्तराध्ययनसूत्र और तत्त्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थों में मन-वचनकाय के व्यापार के अर्थ में भी 'योग' शब्द प्रयुक्त हुआ है किन्तु यहां मन, वचन और काय के व्यापार को प्रेरगामात्र दी गई है। उसी में आगे बतलाया गया है कि योगों के व्यापार से आस्रव और उनके निरोध से संवर होता है और इसके बाद इससे मुक्तिपद की प्राप्ति होती है । १. उत्तरा० सू०, अ० ११ वही, २७,२ ३. जययं विहराहि जोगवं, अणुपाणा पंथा दुरुतरा। अण सासणमेव पवक्कम्मे, वीरेहि सम्म पवेदियं ॥ सूत्रकृतांग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, २. १. ११ ४. स्थानांगसूत्र, स्थान १० ५. (क) जोणपच्चकखाणेणं अजोगत्तं जणयइ । उत्तरा० सत्र २६. ३० (ख) जोगसच्चेणं जोगं विसोहेइ । वही २६. ५३ (ग) मणसमाहरणयाएणं सएग्गं जणयइ । वही, २६.५७ ६. तत्त्वार्थसूत्र ६.१-२ ।। ७. आस्रवनिरोधः संवरः । वही ६.१ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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