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________________ 206 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन चाहिए। उस कणिका के ऊपर एक उज्ज्वल सिंहासन है और उस सिंहासन के ऊपर आसीन होकर कर्मों का समूल-उन्मूलन करने में उद्यत अपने आपका चिन्तन करना चाहिए। चिन्तन की इस प्रक्रिया को पार्थिवी धारणा और पिण्डस्थ ध्यान कहते हैं । (२) आग्नेयीधारणा इस धारणा के विषय में बतलाया गया है कि साधक नाभि के भीतर सोलह पंखुड़ी वाले कमल का चिन्तन करें और तत्पश्चात् उस कमल की कणिकाओं पर अर्ह महामन्त्र की स्थापना करके उसको प्रत्यक पंखुड़ी पर क्रमशः अ, आ आदि सोलह स्वरों को स्थापित करना चाहिए । फिर ऐसा चिन्तन करे कि उस महामन्त्र से धुंआ निकल रहा है तथा अग्नि की ज्वाला ऊपर उठ रही है। इसके बाद हृदय में आठ पंखुड़ी से युक्त अधोमुख कमल की अर्थात् अष्ट कर्मों की कल्पना करे । पूनः उसे चिन्तन करना चाहिए कि नाभिस्थित कमल से उठी प्रबल ज्वालाओं से वे कर्म नष्ट हो रहे हैं और 'र' से व्याप्त हासिया चिन्ह से युक्त धूम रहित अग्नि प्रज्वलित है, ऐसा चिन्तन करे। इसके बाद वह चिन्तन करे कि देह एवं कर्मों को दग्ध करके अग्नि दाह का अभाव होने के कारण धीरे-धीरे वह शान्त हो रहा है। शरीर से बाहर तीन कोण वाले स्वस्तिक से युक्त और अग्निबीज 'रेफ' से युक्त जलते हुए वह्निपुर का चिन्तन उसे करना चाहिए। अनन्तर शरीर के अन्दर महामन्त्र के ध्यान से उत्पन्न हई शरीर की ज्वाला से तथा बाहर को वह्निपुर की ज्वाला से देह और आठ कर्मों से बने कमल को तत्काल भस्म करके अग्नि को शान्त कर देना चाहिए। इस तरह के चिन्तन को 'आग्नेयीधारणा' कहते हैं। १. विचिन्तयेत्तथानाभौ कमलं षोडशच्छदम् । कणिकायाँ महामन्त्रं प्रतिपत्रं स्वरावलिम् ॥ रेफबिन्दु कलाक्रान्तं महामन्त्रे यदक्षरम् । तस्य रेफाद्विनिर्यान्तीं शनैधुमशिखां स्मरेत् ॥ यो० शा०, ७.१३-१४ तथा १५-१८ तथा--ततोऽसो निश्चलाभ्यासात्कमलं नाभिमण्डले । स्मरत्यतिमनोहारि षोडशोन्नतपत्रकम् ॥ रेफरुद्ध कलाविन्दुलाञ्छितं शून्यमक्षरम् । लसदिन्दुच्छटाकोटिकान्ति व्याप्तहरिन्मुखम् ॥ ज्ञानार्णव, ३७.१० एवं १२ तया अधिक के लिए दे० वही, गा० १८-१६ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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