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योग : ध्यान और उसके भेद
193 वाले, असत्यभाषी, झूठी गवाही देने वाले, असत्य से सम्बन्धित जितने भी कार्य हैं, उनमें मन लगाकर यह सोचना कि मैं किस प्रकार का झूठ बोल कर, अपना स्वार्थ सिद्ध करूं और लोगों में निर्दोष भी कहला सकूँ इत्यादि रूमों को धारण करने वाला मृषानुबन्धी दूसरे प्रकार का रौद्रध्यान है ।।
जो मनुष्य कल्पनाओं के समूह से पाप रूपी मैल से मलिन चित्त होकर कुत्सित चेष्टाएं करें, उसे निश्चय करके मृषानन्द नामक रौद्रध्यानी बतलाया गया है। मृषानन्दी सत्त्व मनोवाञ्छित फल प्राप्ति के लिए झूठ को सत्य बतलाकर लोगों को ठगता है और अपने को दूसरों से चतुर समझता है। (३) चौर्यानन्द रौद्रध्यान
तीव्र क्रोध, द्वेष, लोभ आदि के वशीभूत होकर परद्रव्य हरण करने के लिए उपाय सोचना, चोरी के संकल्प से लेकर चोरी करने तक जितनो भी क्रियाएं प्रक्रियाएं हैं वे सभी चौर्यानन्द रौद्रध्यान के अर्न्तगत आती हैं । किसी के अधिकार वाली वस्तु का अपहरण करना चोरी है, ऐसी चेष्टाओं वाले चिन्तनमनन को स्तेयानबन्धी या चौर्यानन्द रौद्रध्यान कहते हैं और जो चोरी के कार्यों के उपदेश के आधिक्य से युक्त है अथवा चौर्यकर्म में चातुर्य एवं चोरो के कार्यो में ही दत्तचित्त है वह चौर्यानन्द रौद्रध्यान है। (४) विषम संरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान
इन्द्रियों के विषयों शब्द आदि की लालसाओं का पूर्ण करने के १. ध्यान शतक, गा० २० २. असत्यकल्पनाजालकश्मली कतमानसः।
चेष्टते यज्जनस्त द्धि मृषारौद्रं प्रकीर्तितम् ॥ ज्ञाना०, २६.१६ ३. दे० स्थानांगसूत्र १२ पर व्याख्या, पृ० ६८१, भवगतीसूत्र, शतक २५
उद्दे७ पर भाष्य तथा दे० औपपातिक सूत्र, तपोधिकार तथा-तह तिब्बकोहलहाउलस्सभूओव धायणमणज्जं ।
परदव्बहरणचित्तं परलोयावायनिरवेक्ख ॥ ध्यान शत०, गा २१ ४. चौर्योपदेशबाहुल्यं चातुर्य चौर्यकर्मणि ।
यच्चौर्यकपरं चेतस्तच्चौर्यानन्द इष्यते ।। ज्ञाना०, २६.२४
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