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________________ 174 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन मन सदा चंचल बना रहता है, उसे स्थिर रखने और अचञ्चल बनाने के लिए ध्यानयोग की प्ररूपणा को गयी है। ध्यान का वर्णन सूत्र रूप में जैन आगमों में प्रचुर रूप से मिलता है। इसका वर्णन करते हुए प्रश्नव्याकरणसत्र में बतलाया गया हैं कि-निव्वायस रयणप्प दीज्झाणमिव निप्पकम्पः अर्थात् स्थिर दीपशिखा के समान निश्छल-निष्कम्प तथा अन्य विषयों के संचार से रहित केवल एक ही विषय का धरावाही प्रशस्त सूक्ष्म बोध जिससे हो वह ध्यान कहलाता है। . आचार्य हरिभद्रसूरि के अनुसार-शुभ प्रतीकों के आलम्बन पर चित्त का स्थिरीकरण रूप ध्यान दीपक की लौ के समान ज्योतिर्मान तथा सूक्ष्म और अन्तःप्रविष्ट चिन्तन से संयक्त होता हैजबकि शीलांकाचार्य ने मन वचन-काय के विशिष्ट व्यापार को ही ध्यान कहा है । तत्त्वार्थसूत्र में अन्तर्मुहुर्त पर्यन्त एक हो विषय पर चित्त की एकाग्रता अर्थात् ध्येय विषय में एकाकारवृत्ति का प्रवाहित होना ध्यान बतलाया गया है। इस ध्यान योग में साधक की ध्येय वस्तुगत एकाग्रता इतनी बढ़ जाती है कि उसको उस समय ध्येय के अतिरिक्त अन्य किसी भी वस्तु का बोध ही नहीं रहता। जिस आत्मा में यह ध्यानरूप योगाग्नि प्रज्वलित होती है, उसका कर्मरूप मल, जो अनादिकाल से आत्मा के साथ चिपका हुआ है, भस्म हो जाता है और उसके प्रकाश से रागादि १. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संवर द्वार-५ २. शभ कालम्बनं चित्त ध्यानमाहुर्मनीषिणः । स्पिरप्रदीपसदशं सूक्ष्माभोगसमन्वितम् ॥ योगबिन्दु, श्लोक ३६२ ३. ज्झाणजोगं समाहटुकायं विउसज्जे सव्वसो। तितिवखं परमं नच्चा आमोक्खाएपरिवए ज्जासि ।। सूत्रकृता० १.८.२६ ध्यानचित्तनिरोधलक्षणं धर्मध्यानादिकं तत्रयोगो विशिष्टमनोवाक्कायव्यापारस्तं ध्यानयोगम् ।। वही टीका ध्यान की विशेष चर्चा के लिए अग्रिम परिच्छेद चतुर्थ देखिए ४. एकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् । तत्त्वार्थसूत्र ६.२७ ५. सज्झायसुज्झोण रयस्स ताइणो, अपावभावस्स तवेरयस्स । विसुज्रीजं सि मलं पुरेकडं समीरियं रू प्य मलं व जोइणा ।। दशवैकालिक, ८.६३ ।। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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