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योगबिन्दु की विषय वस्तु
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१. अनित्य भावना २. अशरणभावना ३. एकत्व भावना ४. अन्यत्व भावना ५. संसार भावना ६. लोक भावना
७. अशुचि भावना ८. आश्रव भावना ६. संवर भावना १०. निर्जरा भावना ११. धर्म भावना १२. बोधिदुर्लभ भावना
आचार्य कुन्दकुन्द के परवर्ती आचायों ने भी इन वैराग्य प्रधान बारह भावनाओं को बहुमान दिया है।
आचार्य उमास्वाति ने अपने दो प्रसिद्ध ग्रंथों में बारह भावनाओं का सुन्दर वर्णन किया है। तत्त्वार्थसूत्र में अनुप्रेक्षा नाम देकर उनका संक्षेप में सूचनामात्र उल्लेख है, जबकि प्रशमरतिप्रकरण में--भावना द्वादश विशद्धा, कह कर उनका वैराग्योत्पादक एवं ललित शैली में वर्णन किया गया है।
यद्यपि उनके क्रम में थोड़ा बहुत आगे पीछे अन्तर भी मिलता है फिर भी संख्या और नाम एक से ही हैं। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक आचार्यों ने अपने-अपने ग्रंथों में स्वतन्त्र शैली में इन्हें पल्लवित एवं पुष्पित किया है। उनमें प्रमुख हैं-श्रीमद्वट्टर', आचार्य शुभचन्द्र' आचार्य हेमचन्द्र', आचार्य नेमिचन्द्र, आचार्य सोमदेव', स्वामिकार्तिकेयः उपाध्याय विनयविजय' और शतावधानी रत्नचन्द्र ।
१. तत्त्वार्यसूत्र ६.७ २. प्रशमरति प्र०, ८.१४६-५० ३. दे० मूलाचार, गा० ८ ४. दे० ज्ञानार्णव. सर्ग २ ५. दे० योगशास्त्र, ४.५५,५६ ६. प्रवचनसारोद्धार, प्रथम भाग, द्वार ६७, पृ० ४५५ ७. दे० यशस्तिलकचम्पू, २.१०५-५७ ८. स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा ६. दे० शान्तसुधारस, श्लोक ७-८ १० दे० भावना शतक
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