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________________ 148 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन जब आत्मा में शुभ भावों का उदय होता है तब अशुभ भावों का आना क्रमशः बन्द होता जाता है। इस प्रकार भावना कर्मनिरोध में सहायक है। साधक को धार्मिक प्रेम, वैराग्य और चारित्र का दृढ़ता की दष्टि से इनका चिन्तन एवं मनन करना अभीष्ट है ।। आचार्य उमास्वाति ने कहा है कि ये भावनाएं चिन्तन, संवेग और वैराग्य की अभिवृद्धि के लिए हैं । भावनाओं के अनुचिन्तन से वैराग्य उत्पन्न होता है जिससे साधक संयम एवं आत्मविकास की ओर उन्मुख होता हैं। योगदर्शन के अनुसार भावना और जीव में गहरा सम्बन्ध है। भावनाओं का चिन्तन करने से आत्मशुद्धि होती है । इसलिए वहां ईश्वर का बार-बार जप करने के बाद ईश्वर को भावना भानी चाहिए और ईश्वर की भावना के पश्चात पुन: जप करना चाहिए । इन दोनों योगों की उपलब्धि होने पर परमेश्वर का साक्षात्कार होता है। ___इसी प्रकार जैनदर्शन में भी भावनाओं का अत्यधिक महत्व प्रतिपादित हुआ है। भावनाओं का वर्गीकृत वर्णन सर्वप्रथम दिगम्बर परम्परा के महान् आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथ बारस अनुवेक्खा में हुआ है। इसके नामकरण से ही सूचित होता है कि इन वैराग्य वर्धक भावनाओं की संख्या बारह है । सम्भवतः आगमगत वर्णनों को आधार बनाकर वैराग्य प्रधान चिन्तन को एक व्यवस्थित रूप देने के लिए ही आचार्य ने उन्हें बारह अनुप्रेक्षा के नाम से संकलित किया हैं क्योंकि आठ अनुप्रेक्षा तो आगम में वर्णित ही हैं। उनमें चार और बोड़ कर उन्हें बारह अनप्रक्षाओं के रूप में प्रस्तुत किया है। जो निम्नलिखित हैं-6 १. ताश्च संवेगवैराग्यप्रशमसिद्वये। आलानितामनःस्तम्मे मुनिभिर्मोक्षमिच्छुभिः । ज्ञानार्णव, २.६ २. संवेगवैराग्यार्थम् । तत्त्वार्थसू० ७.७ ३. वैराग्य उपावन माई, चिन्तो अनुप्रेक्षा भाई। छहढाला, ५.१ ४. तज्जपस्तदीभवनम् । योगदर्शन, व्यास भाष्य १.२८ ५. स्थानांगसूत्र, ४.१ ६. अद्धवमसरणमगतमण्णत्तसंसारलोयमसइतं । आसवसंवरणिज्जरधम्म बोधिं च चितिज्ज ॥ बार० अनु० २ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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