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________________ योगविन्दु की विषय वस्तु 133 में लय होने से मुक्ति की उपलब्धि नहीं हो जाती है। कारण में लय होना तो जल में डुबकी लगाने के समान है। - जैसे एक गोताखोर गोता लगाने के बाद अत्यधिक देर में निश्चित रूप से जल से बाहर आता है कि उसको सदा सर्वदा जल में रहना सम्भय ही नहीं है वैसे ही प्रकृतिलयों को भी निश्चितकाल तक आनन्दोपभोग करने के बाद तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए जन्म ग्रहण करना पड़ता है। ' भवप्रत्यय को स्पष्ट करते हुए बतलाया गया है कि भव का अर्थ है-जन्म और प्रत्यय अर्थात् प्रति+ अय-प्रत्यय>प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात् प्रतीति प्रकट होने अथवा साक्षात्कार करना प्रत्यय कहलाता है। इस प्रकार भवप्रत्यय का अर्थ हुआ-जन्म से ही प्राप्तज्ञान। योग के सन्दर्भ में जन्म से प्राप्तज्ञान अथवा योग्यता और भवप्रत्यय के सन्दर्भ में इसका अभिप्राय होगा - 'जन्म से ही असम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति के लिए आवश्यक योग्यता से युक्त होना । भाष्यकार व्यास के अनुसार भी विदेहों एवं प्रकृतिलयों की देवयोनि विशेष होती है, जिसमें से निश्चित अवधि के बाद जन्म लेना ही पड़ता है। कुछ विद्वानों के अनुसार भी इन दोनों के विवेक ज्ञानशून्य होने से ये साधिकार चित्तवाले होते हैं। जैसे वर्षाकाल के आने पर मृत्तिकाभाव को प्राप्त हुए मण्डूक आदि के देह पुनः मण्डूकभाव को प्राप्त हो जाते हैं, वैसे ही प्रकृति में लय को प्राप्त हुआ चित्त भी अवधि के अनन्तर फिर संसाराभिमुख हो जाता है। अतः तत्त्वों में लीनता की अवधि के भोग पर आए हुए विदेह और प्रकृतिलय योगी जन्म से ही असम्प्रज्ञात समाधि को योग्यता से युक्त चित्त वाले होते हैं। १. न कारणलयात् कृतकृत्यता मग्नबदुत्थानात् । साँख्यसूत्र ३.५४ २. तथा प्रकृतिलयाः साधिकारे चेतसि प्रकृतिलीने कैवल्यपदमिव अनुभवन्ति यावन्नपुनरार्वततेऽधिकारवशाच्चित्तम् । पातञ्जलयोगसूत्र पर व्यास भाष्य, पृ० ६० ३. दे० पातञ्जलयोग : एक अध्ययन, पृ० १४६ ४. दे० पातञ्जलयोगसूत्र, १.१६ पर व्यास भाष्य ५. दे० पातञ्जल दर्शन प्रकाश, १.१६ पर प्रवचन __Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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