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________________ योगबिन्दु की विषय वस्तु ऐसी भावना वाले जीव की स्थिति कभी स्थिर नहीं रहती और आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह में लिप्त रहने के कारण वह सदा दुःखी एवं संतप्त रहता है । वह सदा दूसरों की बुराइयां एवं प्रतिघातों में लगा रहता है । इस प्रकार वह जीव क्षुद्रवृत्ति, अपरोपकारी, भयभीत ईर्ष्यालु, मायाचारी और मूर्ख होता है । ऐसे स्वभाव वाले साधक भले ही यमनियमों का पालन करे किन्तु अन्तःकरण की शुद्धि के अभाव में वे योगी नहीं हो सकते । वे भी योग के अधिकारी नहीं हो सकते, जो लौकिक प्रतिष्ठा हेतु अथवा लौकिक प्रदर्शन अथवा आकर्षण के भाव से योग साधना में प्रवृत्त होते हैं । ' (२) चरमावर्ती वस्तुतः योग साधना का प्रारम्भ यहीं से होता है ।" 'चरमावर्त' में ( चरम + आवर्त ) इन दो शब्दों का मेल है । चरम का अर्थ है— अन्तिम और आवर्त का अर्थ है - भंवर, चक्र, किनारा, पुद्गलों का ( आवर्त ) । इस प्रकार इस भंवर अर्थात् आवर्त में विद्यमान साधक चरमावर्ती कहलाता है ! इसमें साधक स्वभाव से मृदु, शुद्ध तथा विशुद्ध होता है ।" इस पर न्यून मोह का घेरा प्रगाढ़ नहीं होता । मिथ्यात्व की मलिनता भो अत्यन्त होती है । वह शुक्ल पाक्षिक होता है और उसका ग्रंथिभेद भी हो चुका होती है । उसका संसार परिभ्रमण बहुत ही थोड़ा, केवल बिन्दु मात्र संसार चक्रो अवशिष्ट रहता है । साधक समस्त आन्तरिक भावों से १. क्षुद्रो लाभरतिर्दीनो मत्सरी भयवान् शठः । अज्ञो भवाभिनन्दी स्यान्निष्फलाम्यसंगतः ॥ वही, श्लोक ८७ ४. दे योगशतक, परिशिष्ट, पृ० १०९ ३. नवनीताविकल्पस्तच्चरमावर्त इष्यते । अमिलो भावो गोपेन्द्रोऽपि यदम्यद्यात ॥ योगलक्षुद्वा०, श्लोक १८ चरमे पुद्गलावर्ते, यतो यः शुक्लपाक्षिकः । भिन्न ग्रन्थिश्चरित्री च तस्य वेतदुदाहृतम् ॥ योगबिन्दु, श्लोक ७२ चरम (वर्तिनो जन्तोः सिद्धेरासन्नता धुव्रम् | 131 भूयांसोऽमी व्यतिक्रान्तास्तेष्वेको बिन्दुरम्बुद्धौ ॥ मुक्त्यद्वेषप्राधान्य द्वात्रिंशिका, श्लोक ३८ ( जैन योग सिद्धान्त और साधना, पृ० ६५ पर उद्धृत) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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