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योगबिन्दु के रचयिता : आचार्य हरिभद्रसूरि
दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त पर तत्कालीन जैनेत्तर विद्वानों की अनुचित कुशंकाओं के परिमार्जन स्वरूप उपर्युक्त कृति को रचा गया है क्योंकि कृति के शीर्षक से भी यही भाव झलकता है ।
यह कृति संस्कृत में है, जिसकी रचना सम्भवतः सूरि ने अनेकान्तजयपताका से पहले ही की हो, क्योंकि जिस आक्षेप का खण्डन स्याद्वादकुचोदपरिहार में किया गया है उसका उल्लेख आचार्य ने अनेकान्तजयपताका की स्वोपज्ञ टीका में भी किया है ।'
(२१) सम्बोधप्रकरण
सम्बोध प्रकरण का दूसरा नाम तत्त्वप्रकाशक भी मिलता है । पद्यात्मक शैली में रचे गए इस ग्रंथ में १६१० श्लोक हैं । भाषा संस्कृत है किन्तु स्व० पण्डित सुखलाल संघवी इसकी भाषा प्राकृत बतलाते हैं ।
इसमें १२ अध्याय हैं । विषयानुरूप अध्यायों का नामकरण किया गया हैं यथा - देव का स्वरूप, कुगुरु का स्वरूप, पार्श्वस्थ आदि का स्वरूप, गुरु का स्वरूप, सम्यक्त्व का निरूपण, श्राद्ध, प्रतिमा एवं व्रत, संज्ञा, लेश्या, ध्यान, मिथ्यात्व और आलोचना आदि ।
(ख) अप्राप्त एवं उल्लिखित ग्रंथ
आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा लिखे गए कुछ ऐसे ग्रंथ भी हैं जिनका उल्लेख उनके ही अन्य ग्रंथों में या टीकाओं में मिलता है । जैसे---
१.
२.
३.
४.
५.
६.
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१ . अनेकान्त प्रघट्ट
२. अनेकान्त सिद्धि ३. अर्हत् श्री चूडामणि'
इति श्रीसम्बोधप्रकरणं तत्त्वप्रकाशकनामश्वेताम्बराचार्यश्रीहरिभद्रसूरिभिः या किती महत्तरा शिष्यणी मनोहारी या प्रबोधनार्थमिति ज्ञेयः । श्रीहरिभद्रसूरि, पृ० १७५
दे० सम० हरि०, पृ० १०६
विस्तृत अध्ययन के लिए दे० श्रीहरिभद्रसूरि, पृ० ६७-७०
वही, पृ० ८१
दे० अनेकान्तजयपताका, खण्ड-२, व्या०, पृ० २१८
दे० समरा० क० सा० अ० पृ० ७
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