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________________ 92 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन बीस विशिकाओं का प्रथम सम्पादन १६२७ में हुआ। अनन्तर १९३२ में प्रोफेसर आभ्यंकर ने अंग्रेजी टिप्पण, संस्कृत प्रस्तावना, छाया एवं परिशिष्ट के साथ इसको सम्पादित किया था । ___ यशोविजयगणि ने इस पर 'विवरण टीका' लिखी है तथा कुछ विशिकाओं का उल्लेख अपनी रचना अध्यात्मसार में भी किया है। इसकी कुछ-कुछ विशिकाओं पर गुजराती अनुवाद और पं० सुखलाल संघवी का हिन्दी सार तथा आनन्दसागरसूरि का विवरण भी प्राप्त होता है । __आचार्यश्री की इस रचना में कुलनीति, सद्धर्म, दान, पूजाविधि, श्रावक-धर्म, यतिधर्म, शिक्षा, भिक्षा, आलोचना, प्रायश्चित, योगविधान, केवलज्ञान एवं सिद्धसुख आदि विविध विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इस ग्रंथ की एक विशेषता यह है कि इन विशिकाओं का उल्लेख अथवा साम्य अनेक जैन-जनेतर ग्रंथों में मिलता है। इनमें से कुछ के नाम हैं-योगबिन्दु, पंचाशक, आवश्यकनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति, दशवकालिकानियुक्ति और समरादित्यकथा इत्यादि । ___ इनमें अनेक विशिकाओं के विषय का प्रतिपादन किया गया है। इसके साथ ही श्वेताश्वतर उपनिषद् और तैत्तिरीय ब्राह्मण में कुछ विशिंकाओं का साम्य भी दृष्टिगोचर होता है। (१६) संसारदावानल यह आचार्यश्री द्वारा रचित तीर्थकरों की स्तुतिपरक कृति अत्यन्त प्रसिद्ध है । इसका अपरनाम संसारदावास्तुति भी मिलता है। यह स्तुति ग्रंथ पं० सुखलाल संघवी के अनुसार संस्कृत-प्राकृत में निबद्ध है किन्तु डा० नेमिचन्द्र शास्त्री इसकी भाषा संस्कृत मानते हैं। .. इस स्तोत्र का पारायण स्त्रियां अपने प्रतिक्रमण करते समय करती १. दे० वही, पृ० १४१ का पाद टिप्पण २. दे० वही, पृ० १४७-१४८ ३. दे० हरि० प्रा० क० सा० आ० परि०, पृ० ५३ ४. वही, ५. दे० हरिभद्र सूरि, पृ० १६४ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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