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________________ योगविन्दु के रचयिताः आचार्य हरिभद्रसूरि आधार बना कर एक नवानतम रचना का निर्माण किया गया है जिसका नाम है-मार्ग परिशुद्धि। लगता है कि यह नामकरण यशोविजय ने ५वीं शदी के बौद्धाचार्य बुद्धघोष की कृति विसुद्धिमग्ग (विशुद्धिमार्ग) को पढ़ने के बाद उपयुक्त एवं महत्त्वपूर्ण समझ कर रखा है। पंचवत्थुग का गुजराती अनुवाद भी आज उपलब्ध होता है। (१४) पंचासग पद्यात्मक आर्या छन्द में निबद्ध प्रस्तुत कृति को आचार्य ने प्राकृतभाषा में रचा है। इसे १६ भागों में बांटा गया है। १५वें अध्याय में ४४ और अवशिष्ट अध्यायों में ५०-५० श्लोक पाए जाते हैं, जिस कारण लगता है कि इसी को देखकर उपर्युक्त रचना का नाम पंचासग वा पचाशक रखा गया जो संस्कृत पंचशतक का प्राकृत रूप है। इस पर अभयदेवसूरि ने शिष्यहिता नामक टीका लिखी है। जो १६१२ में प्रकाशित हुई। सबसे पहले पंचासग पर श्रीवीरगणि के शिष्य के भी शिष्य यशोदेव ने वि० सं० ११७२ में चूणि लिखी थी, जिसका उल्लेख जिनरत्नकोश में मिलता है। १६५२ में यह उपोद्धात एवं परिशिष्ट के साथ प्रकाशित भी हुई है। इसके अतिरिक्त इस पर अज्ञात टीकाकार की टीका और पृथक्-पृथक् पंचासंगों पर विभिन्न आचार्यों का गुजराती अनुवाद भी मिलता है। पंचासंगों में जिस विषय का प्रतिपादन किया गया है वह हैश्रावक और साधुओं के विविध विधि-विधान आदि। (१५) बीस विशिकाएं बीस अध्यायों वाली आचार्य हरिभद्रसूरि की यह रचना भी प्राकृतभाषा में लिखी गई है । बीस-विशिकाएं इस शीर्षक से यह स्पष्ट है कि प्रत्येक अध्याय में २०-२० गाथाएं हैं। विद्वानों के अनुसार इसकी १४वीं विशिका पूरी नहीं मिलती। १. दे० हरिभद्रसूरि, पृ० १२१-१२६ २. दे० हरिभद्रसूरि, पृ० १४१-१४८ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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