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________________ योगविन्दु के रचयिता : आचार्य हरिभद्रसूरि 89 छपा है । इसके अतिरिक्त यह रचना १९१८ ई. में यशोविजयगणि कृत टीका 'ज्ञानसार' के साथ भी प्रकाशित हुई है ।। विषय वस्तु की दृष्टि से इसमें महादेव, स्नान, पूजा, अग्निकारिका भिक्षा, प्रत्याख्यान, ज्ञान, वैराग्य, तपवाद, धर्मवाद, एकान्त, नित्यानित्य, एकान्त पक्ष का खण्डन-मण्डन, मांस भक्षण, मद्यपान, मैथुन आदि के दूषणों पर प्रकाश डाला गया है । पाप-पुण्य, भावशुद्धि एवं दान उनका फल, तोर्थकृत देशना, केवलज्ञान और मोक्ष के स्वरूप पर निष्पक्ष प्रकाश डाला गया है। इसमें महाभारत, मनुस्मृति, न्यायावतार आदि से श्लोक भी उद्धत किए गए हैं। परवर्ती आचार्यो ने अष्टक के श्लोकों का प्रचर प्रयोग किया है। (११) उपदेशपद 'उपदेशपद' नामक सूरि की रचना आर्या छन्द में निबद्ध प्राकृत भाषामय है । इसमें १०३६ पद्य हैं । इस पर दो टीकाएं भी मिलती हैं उनके नाम हैं१. वर्धमानसूरि की वि० सं० १०५३ में लिखित संस्कृतटीका और २. मुनिचन्द्रसूरि कृत 'सुखसम्बोध' संस्कृतटीका इसके कुछ भाग का गुजराती अनुवाद भी उपलब्ध होता है। इस पर पाश्विलगणि की प्रशस्ति और इसके प्रथमादर्श को आम्रदेव ने लिखा है। ११५३ वि० सं० की इसकी हस्तलिखित प्रति जैसलमेर के भण्डार में आज भी उपलब्ध है। (१२) धर्मबिन्दु संस्कृत भाषा में निबद्ध प्रस्तुत रचना धर्मबिन्दु का एक अपना पृथक् ही महत्त्व है, वह है, इसका धर्मकीर्ति बौद्धाचार्य के हेतुबिन्दु के आधार पर लिखा जाना। १. वही, पृ० ७२ तथा पाद टिप्पण २. विस्तृत अध्ययन के लिए दे० हरि भद्र सूरि. पृ० ८५ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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