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________________ योगविन्दु के रचयिता : आचार्य हरिभद्रसूरि मानते हैं । जो कुछ भी हो निस्सन्देह अतिशयोक्ति को परे कर आचार्य हरिभद्र ने जैसे कि उपर्युक्त तालिका भी कहती है, ७५ग्रन्थरत्नों की तो अवश्य ही रचना की होगी । डा० नेमिचन्द्र शास्त्री आचार्यश्री के ज्ञान पुञ्जतेज के फलस्वरूप उनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या कम से कम १०० मानते हैं । जो यथोचित जान पड़ती है । जैसे उपाकाल में उदित लालिमायुक्त सूर्य, दोपहर में अपने उत्तम प्रतापमयी यौवन से देदीप्यमान होता है और अन्त में ढलते हुए सांध्यकाल में पुनः वह प्रशान्त लालिमामय दृष्टिगोचर होता है, वैसे ही ललित लालिमामयी बाल्यकाल से युक्त, यौवन में ज्ञान गरिमा से गौरवान्वित और अपने पश्चिम जीवन में शिष्यों के वियोग से हताश किन्तु अपने गुरुवर्य की आज्ञारूपी आशा को किरण से अध्यात्म प्रशान्त चित्तधारी आचार्य हरिभद्रसूरि की साधनामयी चारित्रिक झलक ही नहीं बल्कि आचार प्रधान जैनधर्म की प्रभावना का चरमोत्कर्ष क्या दर्शन, क्या योग, क्या काय अथवा कथा साहित्य उनकी समस्त रचानाओं में यत्र तत्र देखने को मिलता है । जहां एक ओर वे जैनदर्शन के कृष्ण पक्ष में कुछ देर से उदित चन्द्र उदीयमान नक्षत्र हैं तो दूसरी ओर वहीं उपी पक्ष की शरदकालीन लम्बी रात्रि की समाप्ति के साथ ही अस्त होने वाले दिनकर के प्रकाश में भी चमचमाते हुए उसी चन्द्र की तरह अपने लम्बे आयुष्य के काल में अधिकतम साहित्य की अनोखी देनरूपी यशः कीर्ति से आज भी देदीप्यमान हैं । यहां अब हम उनकी तपःपूत चिन्तन एवं साधनामयी प्रमुख कृतियों का विवरण के साथ उनकी विषय वस्तु एवं लेखन शैली और उनका प्राप्ताप्राप्त भाष्य तथा टीका आदि का संक्षेप में अध्ययन करेंगे । (क) आचार्य हरिभद्र की दार्शनिक स्वतन्त्र रचनाएं 83 ( १ ) अनेकान्तजयपताका यह हरिभद्रसूरि की प्रसिद्ध दार्शनिक कृति है जिसका सर्वप्रथम १. ( हीरालाल ) हरिभद्रसूरि ( विषय सूची), पृ० १६-२२ दे० हरि प्रा० कथा सा० आ० परि०, पृ० ५० Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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