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योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
(२०) यशोधरचरित्र (२१) वीरांगदकथा
(२२) संग्रहणीवृत्ति
(२३) सपचासत्तरि (२४) संस्कृत आत्मानुशासन (२५) व्यवहारकल्प (२६) वेदबाह्यता निराकरण
(७) दर्शसनप्ततिका (८) धर्मलाभसिद्धि धर्मसार
( 2 )
(१०) नाणापंचगवक्खाण (११) ज्ञानचित्तत्रकरण (१२) न्यायविनिश्चय (१३) परलोकसिद्धि
इसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे ग्रंथों एवं टीका ग्रंथों का उल्लेख डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने अपनी रचना हरिभद्रसूरि के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन में किया है जिनका रचना हरिभद्रसूरि द्वारा की गई है । इन ग्रंथों में निम्नलिखित विशेष हैं
२.
( १ ) तत्त्वार्थ सूत्र लघुवृत्ति (अपूर्ण)
( २ ) ध्यानशतक ( जिनभद्र गणि रचित टीका सहित)
(३) भावार्थमात्र वेदिनी (४) श्रावकधर्मतन्त्र (५) ओघनियुक्ति (६) जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति (७) जम्बुद्वीपसंग्गहणी
(८) उपएसपगरण (e) देवेन्द्र नरेन्द्रप्रकरण
(१०) क्षेत्रसमासवृत्ति (११) जम्बूद्वीपवृत्ति
(
१२ ) श्रावकप्रज्ञप्तिसूत्रवृत्ति (१३) तत्त्वतरंगिनी (१४) दिनशुद्धि (१५) मुनिपतिचरित्र (१६) संकित पच्चीसी
संघर्षशील आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा केवल उपर्युक्त ग्रंथ ही लिखे अथवा रचे गए हों, सो ऐसी भी बात नहीं है । इसके अतिरिक्त भी कुछ आचार्यों के मत में अपनी प्रतिज्ञा अनुसार हरिभसूरि ने १४००, १४४० या १४४४ ग्रंथों की रचना की थी जबकि कुछ आधुनिक विद्वान् आचार्यश्री द्वारा लिखित कृतियों की संख्या १८५ और ७५ तक
(१७) संबोधसत्तरी (१८) सासयजिन कित्तण (१९) लोकविन्दु
(२०) वाटिकप्रतिषेध इत्यादि
१. ० हरिभद्रसूरि के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, पृ० ५३
दे० वही, पृ० ५० तथा शास्त्रवार्ता समु०, भूमिका
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