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योगबिन्दु के रचयिताः आचार्य हरिभद्रसूरि किसी भी जैन अथवा जैनेतर विद्वान् में शायद ही दृष्टिगोचर हो।
हरिभद्रसूरि ने साहित्य, दर्शन और योग साधना के क्षेत्र में जो योगदान दिया है, उसमें उपलब्ध कतिपय विशेषतामों का दिग्दर्शन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है।
कथा साहित्य में हरिभद्रसूरि का स्थान
इसमें संदेह नहीं कि हरिभद्रसूरि कथाकार के साथ ही साथ उच्चकोटि के मर्म ज्ञाता भी थे । जितनी चिन्तन मनन शीलता और गम्भीरता उनमें विद्यमान थी, उतनी अन्य साहित्यकारों में शायद ही दृष्टिगत हो। धार्मिक कथाओं के रचयिता होने पर भी जीवन की विभिन्न समस्याओं को सुलझाना और संघर्ष के वात-प्रतिघात प्रस्तुत करना इनकी अपनी विशेषता है। कौतुहल और जिज्ञासा का सन्तुलन कथाओं में अन्त तक बना रहता है। कथा जीवन के विविध पहलओं को अपने में समेटे हुए पाठक का मनोरंजन करती हई आगे बढ़ती हैं। प्रेम और लौकिक जीवन को विभिन्न समस्याएं समराइच्चकहा में उठाई गई हैं, जो पठनीय और भजनीय है।
हरिभद्रसूरि ने मानव जीवन की समस्याओं को उठाकर उन्हें यों ही नहीं छोड़ दिया, बल्कि उनके समाधान भी दिए हैं। संक्षेप में समराइच्चकहा के प्रत्येक भव की कथा शिल्प, वर्ण्य विषय, पत्रों का चरित्र-चित्रण, संस्कृति का निरूपण एवं विशिष्ट सन्देश आदि दृष्टियों से बेजोड़ है। समराइच्चकहा की भाषा-शैली अत्यन्त परिष्कृत है, इसके द्वारा प्राकृत कथा क्षेत्र को नयी दिशा प्राप्त हुई है।
यहां इतना हो निर्देश करना पर्याप्त होगा कि समराइच्चकहा ने धर्मकथाशैली को ऐसी प्रौढ़ता प्रदान की, जिससे यह शैली उत्तरवर्ती लेखकों के लिए भी आदर्श बन गई। इससे सिद्ध होता है कि हरिभद्रसूरि का कथा साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है ।
धूर्ताख्यान तो अपने ढंग का अद्भुत कथा काव्य है। इस कृति द्वारा भारतीय साहित्य में हरिभद्रसूरि शैली की स्थापना की गयी। इसमें लेखक ने मनोरंजन और कुतूहल के साथ-साथ जीवन को स्वस्थ बनाने के लिए व्यंग्य शैली का अनुपम प्रयोग किया है। संक्षेप में यही कथा
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