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________________ 64 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन भी समाजहित एवं राष्ट्रहित में अनेक पद यात्राएं की और अपने ज्ञानबल के आधार पर धर्मोपदेश देकर उन्मार्ग से सन्मार्ग पर आरुढ़ किया। समाज में प्रचलित कुरीतियों, अनैतिक विश्वासों एवं परम्पराओं में परिवर्तन कराकर उदात्त भावना की प्रेरणा से उसे आध्यात्मोन्मुखी बनाने का सफल प्रयत्न किया ओर स्वात्मविकास करके विमक्तिरसास्वादन भी किया। गुरु भक्त हरिभद्र जनदर्शन में वीतरागी देव, गुरु एवं उनके द्वारा प्ररूपित शास्त्रआगम को सर्वोपरि महत्त्व दिया गया है, फिर इसके प्रति भक्तिभावना का तो कहना ही क्या ? इनका प्रभाव एवं महिमा अचिन्त्य है। आच र्य हरिभद्रसूरि जैसे जैनदर्शन में आए हो नहीं कि उसके अगम्य प्रभाव की झलक उनके अपने गरु के प्रति अनन्य भक्ति में मिलने लगती है। आपकी कृतियाँ और उनमें आगत अप्रत्यक्ष गुरुमहिमा इसका प्रबल प्रमाण हैं। आप में न केवल अपने पूज्य और आराध्य के प्रति ही बहुमान पाया जाता है बल्कि दूसरे सम्प्रदाय के महापुरुषों के प्रति भी उससे कहीं अधिक मान-सम्मान एवं पूज्यत्व की भावना उनमें व्याप्त थी। तभी सम्भवतः वे निष्पक्षरूप से इतने गहनतम दर्शन एवं कथा विषयक साहित्य के सफल रचयिता हुए। एक सफल टीकाकार हरिभद्रसूरि आचार्य हरिभद्रसूरि उच्चकोटि के टीकाकार थे। इसका कारण आपका संस्कृत, प्राकृत एवं तत्कालीन प्रचलित अधिकतम भाषाओं पर असाधारण अधिकार का होना था । विशेषकर संस्कृत और प्राकृत भाषा तो उनकी निजी सम्पत्ति थी, जिनमें अनुपम ज्ञान से परिपूर्ण उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियां आज उपलब्ध हैं। इनमें आगमों पर उनके द्वारा किए गए भाष्य एवं टीका ग्रंथों का विशेष महत्त्व है। इन्हीं में उपलब्ध संकेतों एवं ज्ञान स्रोतों से हरिभद्रसूरि के व्यक्तित्व का महनीय परिचय मिलता है। उनके निखिल साहित्य का परिशीलन करने पर हम पाते हैं कि हरिभद्रसूरि ने जो उदात्त दृष्टि असाम्प्रदायिकवृत्ति और निर्भय विनम्रता अपनी कृतियों में प्रदर्शित की है वैसी उनके पूर्ववर्ती अथवा उत्तरवर्ती ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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