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________________ 57 योगबिन्दु के रचयिताः आचार्य हरिभद्रसूरि ३. कुमारिल भट्ट (ई०सं० ६२० से ७०० ई० तक) ४. शुभगुप्त (ई०सं० ६४० से ७०० ई० तक) और ५. शान्ति रक्षित (ई०सं० ७०५ से ७३२ तक) प्रमुख हैं उपयुक्त तर्क से नि.सन्देह यह सिद्ध होता है कि हरिभद्रसूरि अवश्य ही आठवीं शताब्दी में आविर्भूत हुए होंगे। कुछ दूसरे विद्वान् इसके समर्थन के लिए कुवलयमालाकहा के रचयिता 'उद्योतनसूरि' द्वारा प्रदत्त गाथा को प्रस्तुत करते हैं जिसमें हरिभद्रसूरि को उद्योतनसूरि ने अपना गुरु माना है। उद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा को शक सम्वत् ७०० अर्थात् (ई०सं० ७७८) में समाप्त किया था । ___इससे ज्ञात होता है कि हरिभद्रसूरि ई० सन् के पूर्व अवश्य रहे होंगे किन्तु मुनि जयसुन्दरविजय ने कहा है कि 'मुनि जिनविजय को इन पद्यों का अर्थ समझने में भ्रान्ति हुई है, क्योंकि जो गाथा मुनि जिनविजय ने पहले प्रस्तुत की है उसमें उन्होंने एक पंक्ति और पहले की देकर कहा है कि कुवलयमालाकहाकार 'उद्योतनसूरि के गुरु 'वीरभद्र' थे तथा वीरभद्र के गुरु थे-'हरिभद्रसूरि' अर्थात् यह सिद्ध हुआ कि हरिभद्रसूरि, उद्योतनसूरि के गुरु के गुरु थे। दूसरी ओर दूसरी गाथा का अर्य करते हुए स्वयं मुनि जयसुन्दरविजय ने लिखा है कि मुनि जिनविजय ने तो 'सो सिद्धन्तेण गुरु-' १. मुनिजिनविजय संस्कृत लेख-आचार्य हरिभद्रस्य समयनिर्णयः २. दे० समराइच्चकहाः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १ ३. जो इच्छई भवविरहं को नु बंदए सुयणो। समयसयसत्थ गुरुणो समरमियंका कहा जस्स ॥ कुवलयमालाकहा, अ० ६, ४. कुवलयमालाकहा, अनुच्छेद ४३०, पृ० २८२ ५. दे० अर्ली चौहान डानस्टीज, पु० २२२ । आयरियवीरभद्दो महावरो कप्परूक्खोव्व । सोसिद्धन्तेण गुरुजुत्तिसत्थेहिं जस्स हरिभद्दो । वहुगथं सत्थवित्थरपत्थारियपयड सव्वथो ॥ शास्त्रवार्ता समुच्चय, भूमिका, पृ० १० पर उद्ध त ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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