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________________ 56 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन १. परम्परागत मान्यता इसके अनुसार हरिभद्रसूरि का स्वर्गारोहण वि०सं० ५८५ अर्थात् ई० सन् ५२७ में हआ था।' २. मुनि जिनविजय जी मान्यता मुनि जिनविजय ने अन्तः और बाह्य प्रमाणों को आधार बनाकर ई० सन् ७०० से ७७० तक आचार्य हरिभद्रसूरि का समय निर्धारण किया है। ३. प्रोफेसर के० वी० आभ्यंकर की मान्यता है कि आचार्य हरिभद्रसूरि वि० सं० ८०० से लेकर ६५० के मध्य में इस भूधरा पर विद्यमान थे। प्रथम मान्यता के अनुसार 'शास्त्रवार्तासमुच्चय' के भूमिकाकार 'मुनि जयसुन्दर विजय' ने बड़े ही युक्ति पूर्वक हरिभद्रसूरि का समय छठी शताब्दी माना है। उन्होंने अन्य विद्वानों के मतों का सतर्क खण्डन कर यथोचित प्रमाणों से स्वपक्ष की पुष्टि को है जबकि इसके ठीक विपरीत ‘मनि जिनविजय' ने अपने लेख में हरिभद्रसूरि का समय 'आठवीं शताब्दी' माना है और इसके प्रमाण में उन्होंने हरिभद्रसूरि द्वारा अपने ग्रंथों में उल्लिखित जैनेतर विद्वानों की नामावली उनके समय के क्रम से दी है। इस नामावली में जिन आचार्यों के नाम.आए हैं, उनमें-- १. धर्मकीति (ई०सं० ६०० से ६५० ई० तक) २. भर्तृहरि (ई०सं० ६०० से ६५० ई० तक) १. (क) पंचसए पणसीए विक्कम कालाउ झति अत्यमिको । हरिभद्रसूरिसरो भवियाण दिसऊ कल्लाणं । सेसतुगविचारश्रेणी (ख) पंचसएपणसीए विक्कमभूफालझति अत्यमिओ। - हरिभद्दसूरिसरो घम्मरओ देउ मुक्खसुहं । प्रद्युम्न विचार, गा० ५३२ २. हरिभद्रस्य समयनिर्णयः, पृ० १७ ।। ३. दे० विंशतिविशिका की प्रस्तावना, तथा दे० शास्त्री, हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, पृ०४३ ४. दे. शास्त्रवातासमुच्चय, भूमिका, पृ० १३ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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