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________________ योगबिन्दु के रचयिता: आचार्य हरिभद्रसूरि स्वर में उच्चरित निम्नलिखित गाथा को उन्होंने सुना चक्किदुगं हरिपणगं पणर्ग चक्कीणं केशवो चक्की। केसव चक्की केसव दुचक्की केसी अचक्की अ॥1 गाथा प्राकृत भाषा में थी और वह भी थी संक्षिप्त एवं संकेत पूर्ण । अतः उसका अर्थ हरिभद्र की समझ में कैसे आ सकता था, परन्तु हरिभद्र स्वभाव से जिज्ञासु प्रकृति के थे। अतः गाथा का अर्थ जानने के लिए साध्वी महाराज के चरण कमलों में पहुँचे और उस गाथा का अर्थ बतलाने की प्रार्थना की। साध्वी को हरिभद्र की विनयशीलता और बुद्धि-वैभव को परखने में देर नहीं लगी। उन्होंने अपने अन्तर्मन में अपने सामने भावी जिनशासन प्रभावक को खड़ा हआ देखा। वे प्रार्थी से बोली कि तुम्हें हमारे गुरुवर्य जिनभट्ट के पास जाना होगा। हरिभद्र भी अवसरवादी थे। अतः तत्क्षण आचार्यश्री के पास पहुंच गए। आचार्यश्री भी धर्मदर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् और व्यवहारकुशल थे। प्रथम साक्षात्कार में ही आचार्य प्रवर ने हरिभद्र को पकड़ लिया, गाथा का अर्थ बतलाया, जिसे सुनते ही हरिभद्र अपने कृत अध्ययन को भूल से गए। उन्हें जो अपनी विद्वत्ता का गर्व था, वह चूर-चूर हो गया। उनके ज्ञानावरणीयकर्म का अन्तराय नष्ट हो गया और उन्होंने तुरन्त अपने को आचार्यश्री के चरणों में समर्पित कर दिया । इस तरह वे आचार्यश्री के प्रियपात्र बन गए। ५. आचार्य पद तदनन्तर मुनिश्रीहरिभद्र ने जैनागमों एवं कर्म सिद्धान्त ग्रंथों का गहन अध्ययन एवं मनन किया। अदष्ट कर्म का गम्भीर रहस्य, जीव के भेदाभेद एवं उनकी गति-अगति चौदह गणस्थानों की प्रक्रिया, अनेकान्तवाद, नय-प्रमाण एवं सप्तभंगी आदि विषयों का जो अन्य सम्प्रदाय के ग्रंथों में नाम मात्र भी उल्लेख नहीं था। उन्होंने उसका ज्ञान प्राप्त किया, जिससे उनकी आत्मा में वैराग्य और अति संवेग की तीव्र भावना जाग्रित होती गई। उनकी तार्किकता, प्रामाणिकता, निर्दोषता और ज्ञान १. आवश्यक नियुक्ति गाथा ४२१ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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