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________________ 48 योगविन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन भट्ट बतलाया गया है ।। 'भट्ट' शब्द सूचित करता है कि वह जाति से ब्राह्मण थे। गणधरसार्थशतक की सुमति गणीकृत वत्ति (रचना सं० १२६५) में तो हरिभद्रसूरि का ब्राह्मण के रूप में स्पष्ट निर्देश है ही जबकि प्रभावकचरित्र में इन्हें राजा का पुरोहित बतलाया गया हैं। ३. हरिभद्रसूरि का विद्याभ्यास हरिभद्रसूरि ने विद्याभ्यास कहां और किसके पास किया ? इसका भी कोई उल्लेख नहीं मिलता, परन्तु ऐसा लगता है कि वे जन्म से ब्राह्मण थे और ब्राह्मण परम्परा में यज्ञोपवीत के समय से ही विद्याभ्यास प्रारम्भ हो जाता है । उनका पाण्डित्यपूर्ण साहित्य सजन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि जिन्होंने अपने विद्याभ्यास का प्रारम्भ प्राचीन ब्राह्मण परम्परा के अनुसार संस्कृत भाषा से ही किया होगा और व्याकरण, दर्शन, साहित्य तथा धर्मशास्त्र आदि संस्कृत प्रधान विद्याओं के गहन ग्रंथों का सूक्ष्मतया अध्ययन एवं पारायण किया होगा। विविध विद्याओं के गहन अध्ययन एवं योवन सूल्भ चांचल्य के मद ने सम्भवतः उन्हें अभिमानी बना दिया था क्योंकि उनका दृढ़ संकल्प था कि जिस बात या विद्याओं को मैं न समझ सकूँगा, मैं उस ज्ञान की प्राप्ति हेतु उसका शिष्य बन जाऊंगा। इस संकल्प ने एक दिन सचमुच हरिभद्रसूरि का जीवन ही बदल दिया। उनका अभिमान चूर-चूर हो गया। वे एक दूसरी ही दिशा की ओर बढ़ चले। ४. धर्म परिवर्तन विधि की लीला बड़ी विचित्र है। एक समय हरिभद्र चित्तौड़ के मार्ग पर चले जा रहे थे। तभी उपाश्रय में से एक साध्वी द्वारा मधुर १. संकरो नाम भट्टो, तस्य गंगा नाम भट्टिणी, तीसे हरिभद्दा नाम पंडित ओ पुत्तो। कहावली, पत्र ३०० २. एवं सो पंडित्ताबमुबहमाणो हरिभद्दो नाम माहणो। धर्मसंग्रहणी की प्रस्तावना में उद्ध त. पृ० ५ अ ३. अतितरलमतिः पुरोहितऽभून्नृपविदितो हरिभद्र नाम वित्तः । प्रभावकचरित, शृड्ग ६, श्लोक ८ ४. विशेष अध्यय के लिए दे० समदर्शी आचार्य हरिभद्र, पृ० १० Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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