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________________ 46 योगविन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन थे । गच्छाधिपति आचार्य का नाम जिनभट्ट और दीक्षा गुरु का नाम जिनदत्त था। इनके धर्म परिवर्तन में जो कारण बनीं, उसका नाम साध्वी याकिनी महत्तरा था। इन साध्वी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए हरिभद्रसूरि ने इनको अपनी धर्म माता लिखा है जिसका उल्लेख उनके ग्रंथों में मिलता है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य हरिभद्रसूरि भारतीय दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान् थे । विशेषकर आपकी गति काव्यशास्त्र, ज्योतिष एवं दर्शन साहित्य में थी। जैन जगत् में आप ताकिक दार्शनिक और सर्वदर्शन समन्वयकार के रूप में जाने जाते हैं। इनके दर्शनपरक ग्रंथों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि आपने बौद्धदर्शन का विशिष्ट अध्ययन किया था। इसका पुष्ट प्रमाण है--दिङ नाग के न्यायप्रवेश पर टीका का लिखा जाना । इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि आप बौद्ध दर्शन के भी मर्मज्ञ विद्वान और समीक्षक थे। पूर्वोक्त प्रशस्तियों से इनके जीवन के विषय में जो तथ्य प्राप्त होते हैं, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि१. हरिभद्रसूरि, जिनभट्ट की परम्परा में आचार्य जिनदत्त के शिष्य और उनके उत्तराधिकारी थे। २. साध्वी याकिनी महत्तरा के उपदेश से आप जैनधर्म से प्रभावित होकर उसमें दीक्षित हुए थे। ३. इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की थी। भले ही आचार्य हरिभद्रसूरि ने अपने विषय में कुछ नहीं लिखा तो क्या हुआ, उनके शिष्य और समकालीन आचार्य उनके पाण्डित्य के विषय में मौन साधकर थोड़े ही बैठे रहे, बल्कि उन्होंने हरिभद्रसूरि के विषय में जो कुछ भी लिखा है, वह निःसन्देह यथार्थ से परे नहीं है। ऐतिहासिक तथ्य, पौराणिक दन्त कथाएं, प्रशंसात्मक विवरण क्या किसी के भी व्यक्तित्व को अविश्वसनीय बना सकते, नहीं । जिन कतिपय आचार्यों ने हरिभद्रसूरि के व्यक्तित्व के विषय में अपनी रचनाओं में जिस-जिस प्रकार से उल्लेख किया है, उनमें प्रमुख हैं१. हरिभद्रसूरि के 'उपदेशपद' पर श्रीमुनिचन्द्रसूरि द्वारा कृत टीका प्रशस्ति (वि० सं० ११७४) २. जिनदत्त का गणधर सार्धशतक (वि०सं० ११६८) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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