SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्ष - -सुख में काम भोग बाधक हैं। - थेरगाथा इसका प्रमाण है- 'मा अप्पकस्स हेतु काम सुखस्स विपुलं जहि सुखं” ,५५ लिए विपुल सुख को मत गंवाओ। ,५६ असिविसूपमा' की तरह हैं। सत्य काम का कीचड़ दुस्तर है। 'कामाकटुका 'कामपंको दुरच्चयो' • कामभोग कटुक हैं। वे आशीविष सर्प के भयावह विष ,५७ ---- 1-तुच्छ वैषयिक सुख साधक के लिए वाणी का सम्यक् प्रयोग बहुत आवश्यक है। सत्य संसार का सार है। उत्तराध्ययन का ऋषि सत्य बोलने का निर्देश देता है - 'भासियव्वं हियं सच्चं उत्तर. १९ / २६ ,५८ हितकारी सत्य वचन बोलना चाहिए। अथर्ववेद में कहा 'असन्नस्त्वासत इन्द्रवक्ता' हे इन्द्र! असत्य भाषण करने वाला असत्य / लुप्त ही हो जाता है। मनुस्मृति में इसी बात की ओर संकेत किया गया है सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः || ' ५९ योगशास्त्र में भी कहा गया असत्यवचनं प्राज्ञः प्रमादेनापि नो वदेत् । श्रेयांसि येन भज्यन्ते वात्येव महाद्रुमाः || .६० -- 70 प्राज्ञ को प्रमादवश असत्यवचन नही बोलना चाहिए क्योंकि असत्य से कल्याण का वैसा ही नाश होता है, जैसे आंधी से बड़े-बड़े वृक्षों का न ह्यसत्यात् परो धर्म इति होवाच भूरियम् । सर्व सोढुमलं मन्ये ऋतेऽलीकपरं नरम् || ६१ के - पृथ्वी ने कहा कि असत्य से बढ़कर कोई अधर्म नहीं है। मैं सब कुछ सहने में समर्थ हूं, पर असत्य भाषी का भार मुझसे नहीं सहा जाता है । अनासक्ति Jain Education International 2010_03 इन्द्रिय-विषयों के प्रति अनासक्त भाव तथा पदार्थ के प्रति ममत्व का परित्याग अनासक्ति है। अनासक्ति से चित्त की प्रसन्नता, निर्मलता तथा For Private & Personal Use Only उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy