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मोक्ष - -सुख में काम भोग बाधक हैं। - थेरगाथा इसका प्रमाण है- 'मा अप्पकस्स हेतु काम सुखस्स विपुलं जहि सुखं”
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लिए विपुल सुख को मत गंवाओ।
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असिविसूपमा' की तरह हैं।
सत्य
काम का कीचड़ दुस्तर है। 'कामाकटुका
'कामपंको दुरच्चयो' • कामभोग कटुक हैं। वे आशीविष सर्प के भयावह विष
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1-तुच्छ वैषयिक सुख
साधक के लिए वाणी का सम्यक् प्रयोग बहुत आवश्यक है। सत्य संसार का सार है। उत्तराध्ययन का ऋषि सत्य बोलने का निर्देश देता है - 'भासियव्वं हियं सच्चं उत्तर. १९ / २६
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हितकारी सत्य वचन बोलना चाहिए। अथर्ववेद में कहा 'असन्नस्त्वासत इन्द्रवक्ता' हे इन्द्र! असत्य भाषण करने वाला असत्य / लुप्त ही हो जाता है। मनुस्मृति में इसी बात की ओर संकेत किया गया है
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः || '
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योगशास्त्र में भी कहा गया
असत्यवचनं प्राज्ञः प्रमादेनापि नो वदेत् । श्रेयांसि येन भज्यन्ते वात्येव महाद्रुमाः ||
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प्राज्ञ को प्रमादवश असत्यवचन नही बोलना चाहिए क्योंकि असत्य से कल्याण का वैसा ही नाश होता है, जैसे आंधी से बड़े-बड़े वृक्षों का
न ह्यसत्यात् परो धर्म इति होवाच भूरियम् । सर्व सोढुमलं मन्ये ऋतेऽलीकपरं नरम् ||
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के
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पृथ्वी ने कहा कि असत्य से बढ़कर कोई अधर्म नहीं है। मैं सब कुछ सहने में समर्थ हूं, पर असत्य भाषी का भार मुझसे नहीं सहा जाता है ।
अनासक्ति
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इन्द्रिय-विषयों के प्रति अनासक्त भाव तथा पदार्थ के प्रति ममत्व का परित्याग अनासक्ति है। अनासक्ति से चित्त की प्रसन्नता, निर्मलता तथा
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उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन
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