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लोप (Elision)
मुख-सुख, प्रयत्नलाघव या उच्चारण में शीघ्रता, स्वराघात आदि के कारण कभी-कभी कुछ ध्वनियों का लोप हो जाता है। लोप तीन प्रकार के हैं
स्वरलोप- इसका प्रभाव प्रायः अव्ययों में देखा जाता है। यथा - अरण्ये , रणे (१४/४२) अपि >
(३३/१८) इति > त्ति
(३४/६१) २. व्यंजनलोप श्मशाने > सुसाणे
(२/२०) केचित् > केई
(६/११) किंचित् > किंचि (९/४८) ३. अक्षरलोप
उल्लिखितः > उल्लिओ (१९/६४)
व्यवदानम् > वोदाणं (२९/२८) महाप्राणीकरण (Aspiration)
अल्पप्राण ध्वनियों का महाप्राण में परिवर्तन महाप्राणीकरण कहलाता है। उदाहरण रूप मेंस्पर्शतः > फासओ
(१/३३) परुषः > फरुसा (२/२५) वसतिम् > वसहिं
(१४/४८) पाटितः > फालिओ (१९/६४) अश्वा > अस्सा
(२०/१४) प्रासुके > फासुए (२५/३)
संस्तारे > संथारे (२५/३) घोषीकरण (Vocalization)
घोषीकरण में अघोष ध्वनियों को घोष कर दिया जाता है। जैसे
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उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना
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