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गृहवासे > गिहवासे (५/२४) ऋद्धिमन्तः > इड्डिमंता (५/२७) रसगृद्धः > रसगिद्धे (८/११) ऋषि > इसिं (१२/३०) मृगः > मिगे (३२/३७)
ऋ>
उ
मृषा > मुसं (१/२४) संवृतः > संवुडे (५/२५) पृथिवी > पुढवी (९/४९) ऋजुकृतः > उज्जुकडे (१५/१) मृषावादी > मुसावाई (७/५) पृथक्त्वं > पुहत्तं (२८/१३)
ऋ
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ऊ
परिवृढः > परिवूढे (७/२) उपबृहा > उववूह (२८/३१)
ऋ > ओ
मृषा > मोसस्स (३२/३१)
ऋ> लि
अतादृशे > अतालिसे (३२/९१)
आगमकार का यह नया ही प्रयोग है। ऋ > ढि
अनादृतस्य > अणाढियस्स (११/२७) ऋ > रि
सदृशः > सरिसो (२/२४) वज्रऋषभ > वज्जरिसह (२२/६) एतादृश्या > एयारिसीए (२२/१३)
कीदृशः > केरिसो (२३/११) उपर्युक्त स्वर-परिवर्तन को गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तन, स्वरलोप तथा स्वरागम के रूप में भी जाना जा सकता है।
उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना
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