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की सशक्त सम्प्रेषणीयता के लिए उत्तराध्ययन का कर्ता मृगापुत्र को उत्कृष्ट पात्र के रूप में उपस्थित करता है। ४. अनाथी
बिम्बात्मकता साहित्य का प्राण-तत्त्व है। अच्छा साहित्य वही है जिसके अध्ययन मात्र से वर्ण्य विषय रूपायित होने लगता है, उसका मानसिक प्रत्यक्ष होने लगता है। मगध सम्राट् श्रेणिक और मुनि अनाथी के बीच हुई वार्ता से अनाथी की अनाथता मगधाधिपति को भी अनाथता का मानसिक प्रत्यक्ष कराती है- 'अप्पणा वि अणाहो सि सेणिया! मगहाहिवा।' (२०/१२)
श्रेणिक! तुम अनाथ हो, दूसरों के नाथ कैसे बनोगे? ऐसा अश्रुतपूर्व वचन सुनकर राजा आश्चर्यान्वित हो गया। पर जब मुनि अनाथ शब्द का अर्थ
और उसकी उत्पत्ति का वर्णन करते हैं तब राजा को वर्ण्य विषय की स्पष्टता हो जाती है। नृप स्वयं अनाथता का अनुभव कर मुनि से अनुशासित होने की हम करता है। 2 जी के अकिञ्चन जीवन व अनासक्त चरित्र का राजा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ५. अरिष्टनेमि
सोरियपुर नगर के समुद्रविजय राजा एवं शिवा रानी का पुत्र अरिष्टनेमि लोकनाथ एवं जितेन्द्रिय था । वे दूसरों का अकल्याण नहीं चाहते थे। छोटी सी कथा में अरिष्टनेमि के व्यक्तित्व पर गहरा प्रकाश पड़ता है - शरीर संपदा के स्वामी
अरिष्टनेमि स्वर-लक्षणों (सौन्दर्य, गाम्भीर्य आदि) से युक्त, एक हजार आठ शुभ-लक्षणों के धारक, गौतम गोत्री और श्याम वर्ण वाले थे। (उत्तर. २२/५) उनका संहनन वज्र-ऋषभ-नाराच (सुदृढ़तम अस्थि-बन्धन) तथा समचतुरस्र संस्थान था। उदर मछली के उदर जैसा था -
वज्जरिसहसंघयणो समचउरंसो झसोयरो। उत्तर. २२/६
इस प्रकार शुभ लक्षणों के धारक अरिष्टनेमि निश्चित रूप से शरीर सम्पदा के स्वामी हैं। विवाह के लिए जाते समय जब वासुदेव के ज्येष्ठ गन्धहस्ती पर आरूढ़ होते हैं, उस समय उनका शारीरिक सौन्दर्य और अधिक निखरता .
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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