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________________ परम सहिष्णु हरिकेशी एक मास के तप के पारणे हेतु भिक्षार्थ यज्ञशाला में उपस्थित हुए। जीर्ण तथा मैले वस्त्र देखकर ब्राह्मण उनका उपहास करने लगे। उन्होंने कहा - काए व आसा इहमागओ सि? यहां क्यों आये हो? निकल जाओ। वे इस उपहास को भी शांत भाव से सहनकर सहिष्णुता का परिचय देते हैं और 'न हु मुणी कोवपरा हवंति' इस उक्ति को चरितार्थ करते हैं। हरिकेशी के विशेषण कुल के परिचायक, सोवागकुलसंभूओ (चाण्डाल कुल में उत्पन्न), १२/ १, लब्धिसंपन्न, आसीविसो (आशीविष लब्धि से संपन्न) १२/२७, चरित्र विधायक, गुणुत्तरधरो (ज्ञानादि गुणों का धारक) १२/१, जिइंदिओ (जितेन्द्रिय ) १२/१, संजओ (संयमी) १२/२, सुसमाहिओ (समाधिस्थ) १२/२, मणगुत्तो (मन से गुप्त ) १२/३,वयगुत्तो (वचन से गुप्त ) १२/३, कायगुत्तो (शरीर से गुप्त ) १२/३, समणो (श्रमण) १२/९, बंभयारी (ब्रह्मचारी) १२/ ९, उग्गतवो (उग्र तपस्वी ) १२/२२, महप्पा (महात्मा) १२/२२, महाजसो (महान यशस्वी ) १२/२३, महाणुभागो (अचिन्त्य शक्ति-संपन्न) १२/२३, घोरव्वओ (घोरव्रती) १२/२३, घोरपरक्कमो (घोर पराक्रमी) १२/२३, ये सभी विशेषण हरिकेशी के उत्कृष्ट चरित्र के संसूचक हैं। हरिकेशी की उपरोक्त उदात्त चारित्रिक विशेषताएं आर्हत् जीवन-दर्शन के प्रतिपादन में उत्तराध्ययन के कवि को सफलता प्राप्त कराती है। ३. मृगापुत्र उत्तराध्ययन में मृगापुत्र ऐसा पात्र है जिसने विवाह कर राज्यपद का भोग करने के पश्चात् संयम स्वीकार करके मोक्ष गति को प्राप्त किया। निमित्त बने एक संन्यासी, जिन्हें देखकर पूर्वजन्म की स्मृति हुई और दीक्षा के लिए माता-पिता से आज्ञा मांगी। 'अणुजाणह पव्वइस्सामि अम्मो' (१९/१०) माता! मुझे अनुज्ञा दें, मैं प्रवजित होऊंगा। माता-पिता संयम जीवन की कठिनाइयों का वर्णन कर मनुष्य सम्बन्धी भोगों के भोग के लिए प्रेरित करते हैं, अनेक प्रयास करते हैं कि वह संयम ग्रहण न करे। किन्तु भावना की पुष्टि हेतु मृगापुत्र विविध तर्क देकर माता-पिता को आखिर यह कहने के लिए बाध्य कर देता है कि 'पुत्ता! जहासुहं' पुत्र! जैसे तुम्हें सुख हो वैसे करो। यहां भावों उत्तराध्ययन में चरित्र स्थापत्य 193 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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