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________________ विषयवस्तु की दृष्टि से उत्तराध्ययन के अध्ययन चार भागों में विभक्त होते हैं १. धर्मकथात्मक - ७, ८, ९, १२, १३, १४, १८, १९, २०, २१, २२, २३, २५ और २७ उपदेशात्मक - १, ३, ४, ५, ६ और १० २. ३. 8. कुछ विद्वानों का अभिमत है कि उत्तराध्ययन के प्रथम १८ अध्ययन प्राचीन हैं और उत्तरवर्ती १८ अध्ययन अर्वाचीन हैं। इसके लिए कोई पुष्ट साक्ष्य नहीं है पर यह निश्चित है कि कई अध्ययन बहुत प्राचीन हैं और कई अर्वाचीन आचारात्मक–२, ११, १५, १६, १७, २४, २६, ३२ और ३५ सैद्धान्तिक – २८, २९, ३०, ३१, ३३, ३४ और ३६ इन सभी तथ्यों से निष्कर्ष निकलता है कि यह संकलन सूत्र है, एक कर्तृक नहीं। उत्तराध्ययन का परिचय ?? आगमों में उत्तराध्ययन का स्थान महत्त्वपूर्ण है। दिगम्बर आगम में भी अंग - -बाह्य के चौदह प्रकारों में आठवां भेद उत्तराध्ययन है।' उत्तराध्ययन दो शब्दों का सम्मिलित रूप हैं- उत्तर और अध्ययन। निर्युक्तिकार के अनुसार प्रस्तुत अध्ययन आचारांग के उत्तरकाल में पढ़े जाते थे, इसलिए उन्हें 'उत्तर अध्ययन' कहा गया। १२ श्रुतकेवली शय्यंभव के पश्चात ये अध्ययन दशवैकालिक के उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे। अतः ये 'उत्तर अध्ययन' ही बने रहे। १३ १४ समवायांग में 'छत्तीसं उत्तरज्झयणा' - छत्तीस उत्तर अध्ययन प्रतिपादित हुए हैं। (समवाओ, समवाय ३६) नंदी में भी 'उत्तरज्झयणाई' यह बहुवचनात्मक नाम है। (नंदी, सूत्र ७८ ) उत्तराध्ययन के अंतिम अध्ययन के अंतिम श्लोक में ‘छत्तीसं उत्तरज्झाए' ऐसा बहुवचनात्मक नाम है। नियुक्तिकार और चूर्णिकार" ने भी बहुवचनात्मक प्रयोग किया है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि उत्तराध्ययन विविध अध्ययनों का योग मात्र है, एक - कर्तृक ग्रन्थ नहीं। . १५ उत्तराध्ययन आर्ष काव्य है। विन्टरनित्स, कानजीभाई पटेल आदि ने उत्तराध्ययन का शैली वैज्ञानिक अध्ययन Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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