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जैसी करणी वैसी भरणी
___ मनुष्य क्रोध से अधोगति में जाता है। मान से अधम गति होती है। माया से सुगति का विनाश होता है। लोभ से दोनों प्रकार का ऐहिक और पारलौकिक भय होता है
अहे वयइ कोहेणं माणेणं अहमा गई। माया गईपडिग्घाओ लोभाओ दुहओ भयं ॥ उत्तर. ९/५४
यहां क्रोध से नरकगति, मान से अधम गति, माया से सुगति का विनाश/दुर्गति की प्राप्ति, लोभ से भय की प्राप्ति के परिणामों का प्रतिपादन सकारण होने से काव्यलिंग अलंकार है।
लोक-प्रचलित कथन-लोभी व्यक्ति निरन्तर भयभीत रहता है—इस व्यावहारिक तथ्य का भी यहा उद्घाटन हुआ है। अकाल में विनाश 'रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं'
उत्तर. ३२/२४ जो मनोज्ञ रूपों में तीव्र आसक्ति करता है, वह अकाल में ही विनाश को प्राप्त होता है। यहां तीव्र आसक्ति कारण है तथा अकाल में मृत्यु कार्य है। पूर्वजन्म की स्मृति कैसे करें?
'उवसंतमोहणिज्जो सरई पोराणियं जाई’ उत्तर. ९/१ नमि का मोह उपशान्त था जिससे उसे पूर्वजन्म की स्मृति हुई।
यहां पूर्वजन्म की स्मृति रूप कार्य का, उपशांत मोह कारण होने से काव्यलिंग अलंकार है। * उदात्त अलंकार
जहां ऐश्वर्य, विभूति, समृद्धि का वर्णन हो वहां उदात्त अलंकार होता है। सम्पन्नता, महनीयता, उत्कर्ष के निरूपण में इसका प्रयोग श्रेष्ठ समझा जाता है। यह ऐश्वर्य और औदार्य का भी बोधक है। आत्मिक ऐश्वर्य
अहो ! ते निज्जिओ कोहो, अहो ! ते माणो पराजिओ। अहो ! ते निरक्किया माया, अहो! ते लोभो वसीकओ। उत्तर. ९/५६
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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