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इन रूपकों के द्वारा ग्रन्थकार ने अपने कथ्य की भावानुकूल अभिव्यक्ति देकर उदात्त जीवन-मूल्यों के अनेक चित्र खींचे हैं । कवि की कल्पना, कवि के विचार, कवि के मनोगत भाव अभिव्यक्त हुए हैं ।
* दृष्टान्त अलंकार
दृष्टान्त का अर्थ है उदाहरण । दृष्टान्त में किसी एक बात को कहकर उसकी पुष्टि के लिए उसके सदृश दूसरी बात कही जाती है। जहां उपमेय, उपमान और उनके साधारण धर्मों में बिम्ब - प्रतिबिम्ब भाव हो उसे दृष्टान्त अलंकार कहते हैं।
आचार्य मम्मट ने लिखा है
'दृष्टान्तः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिंबनम् । १६५
उत्तराध्ययनकार ने अपने कथन की अभिव्यक्ति के लिए दृष्टान्त अलंकार प्रयोग बहुलता से किया है।
तिरस्कार का पात्र
अविनीत शिष्य के स्वरूप प्रतिपादन का चित्रण कुतिया के दृष्टान्त से इस प्रकार किया गया है—
जहा सुणी पूइकण्णी निक्कसिज्जइ सव्वसो ।
एवं दुस्सील पडिणीए मुहरी निक्कसिज्जई ॥ उत्तर. १/४
कुतिया के धर्म का मनुष्य पर आरोप करते हुए यह द्योतित किया है कि दुश्शील शिष्य सर्वत्र तिरस्कार का पात्र होता है । पूतियुक्त शुनी कहीं भी स्थान प्राप्त नहीं कर सकती, वैसे ही उदण्ड कहीं भी सम्मान प्राप्त नहीं करता ।
यहां पर अविनीत शिष्य और सड़े कान वाली कुतिया में बिंब - प्रतिबिंब भाव है।
चूर्णिकार और वृत्तिकार के अनुसार 'शुनी' शब्द का प्रयोग अत्यन्त ग एवं कुत्सा को व्यक्त करने के लिए किया गया है । ६६
तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने इस मंतव्य को इस प्रकार भाषा दी
कुहया काना री कूतरी तिणरै झरै कीड़ा राध लोही रे । सगले ठाम स्यूं काढ़े हुई हुड् करे, घर में आवण न दे कोई रे || धिग धिग अविनीत आतमा ॥ ६७
उत्तराध्ययन में रस, छंद एवं अलंकार
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