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दुष्कर है इन्द्रिय-दमन
जहा भुयाहिं तरिउं दुक्करं रयणागरो। तहा अणुवसंतेणं दुक्करं दमसागरो॥ उत्तर. १९/४२
जैसे समुद्र को भुजाओं से तैरना बहुत ही कठिन कार्य है, वैसे ही उपशमहीन व्यक्ति के लिए दमरूपी समुद्र को तैरना बहुत ही कठिन कार्य है।
सागर को पार पाना कितना कठिन है, उतना ही कठिन है इन्द्रियों को अपने वश में करना। इस तथ्यपूर्ण रूपक से इन्द्रियों के शमन की कठिनता अभिव्यंजित हो रही है। मित्र कौन ? शत्रु कौन ?
___ महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन में अनाथी मुनि का वर्णन है। संयम स्वीकार कर जब वे स्वयं के तथा सभी प्राणियों के नाथ बन गये, उसके बाद उन्होंने आत्मकर्तृत्व की व्याख्या की। रूपक की भाषा में उन्होंने कहा
अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा में नंदणं वणं॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठियसुपट्टिओ। उत्तर. २०/३६, ३७
आत्मा ही वैतरणी नदी है, आत्मा ही कूट शाल्मली वृक्ष है, आत्मा ही कामदुधा धेनु है, आत्मा ही नन्दनवन है, आत्मा ही सुख-दुःख की करने वाली और उनका क्षय करने वाली है, सत्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही मित्र है और दुष्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही शत्रु है।
___ आत्मा स्वतंत्र है, सर्व शक्तिमान है। अपने कर्मों की कर्ता या विकर्ता वह स्वयं ही है। बंधन और मुक्ति कहीं बाहर नहीं, अपने ही भीतर है। जो राग-द्वेष के वशीभूत है, वह बद्ध है और जो इसकी श्रृंखला को तोड़ आगे बढ़ चुका वह मुक्त है , भीतर प्रतिष्ठित होकर सुख का अनुभव कर रहा है।
सुप्रतिष्ठित आत्मा द्वारा भीतर जाकर सुख से बैठे और आराम करें, बाहर अटक न जाएं। इसलिए शत्रु और मित्र की भाषा में आत्मा को प्रतिष्ठित करते हुए कहा गया-दुष्प्रवृत्ति में लगी आत्मा वैतरणी नदी, कूट शाल्मली वृक्ष तथा शत्रु है। सत्प्रवृत्ति में लगी आत्मा कामधेनु, नन्दनवन और मित्र है। . यहां अमूर्त पर मूर्त्तत्व का आरोप हुआ है।
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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