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आश्रय वृक्ष का, राजा का
प्रव्रज्या के लिए तत्पर नमि राजर्षि से ब्राह्मण रूप में इन्द्र प्रश्न करता आज मिथिला के प्रासादों और गृहों में कोलाहल से युक्त दारुण शब्द क्यों सुनाई दे रहे हैं? तब राजर्षि के उत्तर को ग्रन्थकार रूपक की भाषा में वस्तु-स्थिति की सच्ची झलक प्रस्तुत करते हुए कहते हैं- मिथिला में मनोरम पक्षियों के लिए सदा उपकारी एक चैत्यवृक्ष था । तूफानी हवा ने उस मनोरम चैत्यवृक्ष को उखाड़ दिया । अतः उसके आश्रित पक्षी दुःखी, अशरण और पीड़ित होकर आक्रन्दन कर रहे हैं.
मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे । पत्तपुप्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया || वाण हीरमाणमि, चेइयंमि मणोरमे ।
दुहिया असरणा अत्ता, एए कन्दंति भो खगा ॥ उत्तर. ९ / ९, १०
यहां ग्रन्थकार ने नमि को चैत्यवृक्ष बतलाते हुए रूपक बांधा है। पक्षियों के उपचार से सूत्रकार बताना चाहते हैं कि नमि राजर्षि के अभिनिष्क्रमण को लक्ष्य कर नमि के सभी स्वजन तथा मिथिलावासी आक्रन्दन कर रहे हैं, मानो चैत्यवृक्ष के धराशायी हो जाने पर पक्षिगण आक्रन्दन कर रहे हों । वैराग्य रूपी मि को संसार से विरक्त किया है, इसलिए स्वजन रूपी पक्षी अपने स्वार्थ का भंग होते हुए देख विलाप कर रहे हैं। इष्ट वस्तु का वियोग ही इनके रूदन का कारण है ।
नमि के अभिनिष्क्रमण से मिथिलावासियों की मनःस्थिति का चित्रण इस रूपक से हो रहा है।
सुरक्षा कैसे ?
ब्राह्मण के द्वारा नगर-रक्षा के लिए कोट, आगल, तोप आदि के निर्माण की बात सुनकर रक्षा का उपाय बताते हुए नमि ने रूपक द्वारा शक्रेन्द्र को
समझाया
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सब्द्धं नगरं किच्चा, तवसंवरमग्गलं ।
खंति निउणपागारं तिगुत्तं दुप्पधंसयं ॥ उत्तर. ९/२०
सम्यक्त्व के आधारभूत तत्त्व श्रद्धा को मैंने नगर बनाया है। शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य इसके पांच द्वार हैं। क्षमा, आर्जव आदि दश
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उत्तराध्ययन का शैली वैज्ञानिक अध्ययन
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