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तेणे जहा संधिमुहे गहीए SS IS SIIS ISS (इन्द्रवज्रा) सकम्मुणा किच्चइ पावकारी। ISIS SII SISS
(उपेन्द्रवज्रा) एवं पया पेच्च इहं च लोए SS ISSI IS ISS (इन्द्रवज्रा) कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि ।। उत्तर. ४/३
ISISI । । SS (उपेन्द्रवज्रा) इन्दवज्रा
यह ग्यारह अक्षरों वाला वर्णिक छंद है, समछन्द है। इस छंद के प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण एवं अंत में दो गुरु का विधान किया जाता है। पिंगल ने लिखा है- 'इन्द्रवज्रा तौ ज्गौ म्।' वृत्तरत्नाकर में इन्द्रवज्रा का लक्षण इस प्रकार है-'स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।१२
एत्थ खत्ता उवजोइया वा S. SISS TISISS अज्झावया वा
सह खंडिएहिं। SSIS
SISS एयं दंडेण फलेण हता SS SSI ISI SS कंठम्मि घेत्तूण खलेज जो णं।। उत्तर. १२/१८ SSI SSI ISI SS
यहां कौन है क्षत्रिय, रसोइया, अध्यापक या छात्र, जो डण्डे से पीट, एडी का प्रहार कर, गलहत्था दे इस निर्ग्रन्थ को यहां से बाहर निकाले।
ऊपर वर्णित छंद के तीसरे चरण को छोड़कर प्रत्येक चरण में दो तगण (SSI,I SSI), एक जगण (ISI) और अंत में दो गुरु (SS) क्रम से ग्यारह वर्ण हैं। तीसरे चरण में वैकल्पिक प्रयोग होने से एकमात्रा की हानि है। उपेन्द्रवज्रा
इन्द्रवज्रा छन्द के चारों चरणों के प्रथम अक्षर लघु अर्थात् हस्व हों,
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