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उपजाति
यह संस्कृत एवं प्राकृत वाङ्मय का प्रमुख छंद है। उदात्तता, भयंकरता आदि के चित्रण में उपजाति छंद का प्रयोग प्रायः देखा जाता है। छंदसूत्र तथा उसकी वृत्ति में उपजाति के स्वरूप तथा चौदह भेदों का निरूपण किया गया है। पिंगल ने लिखा है- 'आद्यन्तावुपजातयः' इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के चरण मिलकर उपजाति का निर्माण होता है।
अर्धमागधी आगमों में प्रभूत मात्रा में उपजाति का प्रयोग मिलता है। उत्तराध्ययन में चौथा एवं बत्तीसवां अध्ययन उपजाति छंद में निबंधित है।
अविनीत-विनीत शिष्य के लक्षण प्रकट करते हुए उत्तराध्ययनकार कहते हैं
अणासवा थूलवया कुसीला ISIS SISI ISS
(उपेन्द्रवज्रा) मिउं पि चण्डं पकरेंति सीसा। IS i SS LIST
(उपेन्द्रवज्रा) चित्ताणुया लहुदक्खोववेया SS IS THIS ISS
(इन्द्रवज्रा) पसायए ते हु दुरासयं पि।। उत्तर. १/१३ IS IS I S ISS (उपेन्द्रवज्रा)
आज्ञा को न मानने वाले और अंट-संट बोलने वाले कुशील शिष्य कोमल स्वभाव वाले गुरु को भी क्रोधी बना देते हैं। चित्त के अनुसार चलने वाले और पटुता से कार्य संपन्न करने वाले शिष्य दुराशय गुरु को भी प्रसन्न कर लेते हैं।
उपर्युक्त गाथा के तृतीय चरण में विकल्प का प्रयोग हुआ है। तगण के बाद तगण होना चाहिए था, किन्तु तगण के बाद भगण का प्रयोग हुआ है तथा संयोग से पूर्व 'द' को विकल्प से लघु माना है।
उपजाति छंद में कर्म-सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए आगमकार कहते हैं
SS.
उत्तराध्ययन में रस, छंद एवं अलंकार
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