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चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो ।
माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं ।। उत्तर. ३/१
इस संसार में प्राणियों के लिए चार परम अंग दुर्लभ है - मनुष्यत्व, श्रुति, श्रद्धा और संयम में पराक्रम ।
इस गाथा के प्रत्येक चरण में छठा वर्ण क्रमषः मं, जं, ई, वी गुरु है तथा पांचवां वर्ण र, ह, सु, य सर्वत्र लघु है। दूसरे और चतुर्थ चरण में सातवां तु, रघु है तथा प्रथम और तृतीय में गा, स ( संयोग पूर्व) गुरु है। अनुष्टुप् छंद में हरिकेशी की पूज्यता का वर्णन ध्यातव्य हैअच्चे ते महाभाग !, न ते किंचि न अच्चिमो । भुंजाहि सालिमं कूरं, नाणावंजणसंजयं । उत्तर. १२ / ३४
महाभाग ! हम आपकी अर्चा करते हैं। आपका कुछ भी ऐसा नहीं हैं, जिसकी हम अर्चा न करें। आप नाना व्यंजनों से युक्त चावल - निष्पन्न भोजन लीजिए।
यहां प्रथम चरण का पंचम अक्षर 'म' लघु, छठा 'हा' एवं सातवां 'भा' दोनों गुरु हैं। तृतीय चरण में पांचवां 'लि' लघु तथा छठा 'मं' एवं सातवां 'कू' गुरु है। द्वितीय पाद का पांचवां 'न' तथा सातवां 'चि' लघु है तथा छठा 'अ' (संयोग पूर्व) गुरु है। चतुर्थ पाद का पांचवां 'ण' एवं सातवां 'जु' लघु है तथा छठा 'सं' गुरु है। अतः यहां अनुष्टुप् का लक्षण पूर्णतया घटित है।
मिश्र अनुष्टुप्
संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो ।
विणयं पाउकरिस्सामि, आणुपुव्विं सुणेह मे । उत्तर. १ / १
संयोग से मुक्त है, अनगार है, भिक्षु है, उसके विनय को क्रमशः प्रकट करूंगा। मुझे सुनो।
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इसके तृतीय चरण में. गाथा छंद का लक्षण घटित है। शेष में ८-८ वर्ण हैं। प्रथम पाद का पंचम लघु तथा छठा, सातवां गुरु है। द्वितीय का पांचवां, सातवां लघु और छठा गुरु है। चतुर्थ का पंचम, सप्तम लघु है तथा छठा गुरु है।
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उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन
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