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महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा रथनेमि के प्रति रौद्र रस के उद्दीपन विभाव की योजना में सहायक बनता है। वाक्य-वक्रता
जब संपूर्ण वाक्य के कारण रमणीयता या विच्छित्ति (वक्रता) का आधान किया जाय तो वाक्य-वक्रता होती है। आचार्य कुन्तक ने समस्त अलंकार प्रपंच को वाक्य-वक्रता के अंतर्गत माना है।
इसमें वक्रता का आधार पूरा वाक्य होता है। वक्रोक्तिकार के शब्दों
उदारस्वपरिस्पन्दसुंदरत्वेन वर्णनम्।। वस्तुनो वक्रशब्दैकगोचरत्वेन वक्रता।।७२
वस्तु का उत्कर्ष-युक्त, स्वभाव से सुन्दर रूप में केवल सुन्दर शब्दों द्वारा वर्णन अर्थ या वस्तु की वक्रता कहलाती है। तात्पर्य जहां किसी वस्तु या विषय के स्वाभाविक रूप का ही ऐसा सहज-वर्णन हो कि उसमें किसी प्रकार का अर्थ-सौन्दर्य उत्पन्न हो गया हो, उसे वाक्य वक्रता कहते है।
तथ्य की अभिव्यक्ति तथा रसात्मक वाक्य के प्रयोग से रचना में नवीनता, मौलिकता आती है। प्रसंग के अनुरूप वाक्य-प्रयोग रचनाकार की रचनाधर्मिता के स्तर को द्योतित करते हैं। वाक्य-वक्रता की दृष्टि से उत्तराध्ययन महत्त्वपूर्ण है। रचनाकार ने छोटे-छोटे वाक्यों में सहज-स्वाभाविक वर्णन प्रस्तुत कर वाक्य में सुन्दरता का अभिनिवेश किया है। निम्न पद्यों में कवि की वाक्य-वक्रता प्रकट हो रही है -
सव्वं विलवियं गीयं सव्वं नर्से विडंबियं। सव्वे आभरणा भारा सव्वे कामा दुहावहा।। उत्तर, १३/१६
सब गीत विलाप हैं, सब नाट्य विडम्बना हैं, सब आभरण भार हैं और सब काम-भोग दुःखकर हैं।
विलाप प्रपंच है, सत्य नहीं। सामान्य रूप से विलाप शब्द शोक का सूचक है। विलाप मन का तोष मात्र है, उस समय मस्तिष्क काम नहीं करता। सांसारिक गीत मिथ्या है। भोगविलास के साधन प्राप्त होने पर
उत्तराध्ययन में वक्रोक्ति
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