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'रमु क्रीडायाम्' धातु से निष्पन्न 'रमइ' क्रिया इस बात की ओर संकेत कर रही है कि अज्ञानी भिक्षु पूरे मन से दुःशील में ही रमण करता है। __ भिक्खट्ठा बंभइज्जम्मि जन्नवाडं उवडिओ।। उत्तर. १२/३
वह भिक्षा लेने के लिए यज्ञ-मण्डप में उपस्थित हुआ, जहां ब्राह्मण यज्ञ कर रहे थे।
उप उपसर्गपूर्वक स्था धातु से क्त प्रत्यय होकर भूतकालिक कृदन्तक्रिया-रूप ‘उवट्ठिओ' क्रिया-वैचित्र्य-वक्रता का उदाहरण है। उप का अर्थ है-निकटता, समीप, सामने आदि। यज्ञ-मण्डप में आया हुआ मुनि बाह्य और आभ्यन्तर दोनों रूप से एक समान है। वह जीवन निर्वहन के लिए कुछ भोजन हेतु उपस्थित है, सामने खड़ा है। वह भोजन जो यज्ञ हेतु सहज निष्पन्न है उसमें से ही माधुकरी वृत्ति के आश्रयण हेतु आया है। यहां 'उवढिओं' क्रिया के द्वारा कवि ने हरिकेशी मुनि के अभिप्राय को शालीनतापूर्वक अभिव्यंजित करने का कौशल दिखाया है।
अन्नस्स अट्ठा इहमागओ मि। उत्तर. १२/९ मैं सहज निष्पन्न भोजन पाने के लिए यहां आया हूं।
आ उपसर्गपूर्वक गम् धातु से क्त प्रत्यय लगकर निष्पन्न 'आगओ' क्रिया से गमन और ज्ञान दोनों अभिव्यंजित है। 'मैं भिक्षा के लिए आया हं' अज्ञानी बनकर, वनीपक बनकर नहीं किन्तु साधु योग्य कर्तव्य, एषणीयअनेषणीय को अच्छी तरह जानता हुआ यहां आया हूं। अन्य भिक्षुओं से अलगाव भी आगओ क्रिया से प्रकट हो रहा है।
'भज्जं जायइ केसवो'। उत्तर. २२/६ अर्थात् केशव ने अरिष्टनेमि के लिए राजीमती की याचना की।
'जायइ' क्रिया-वैचित्र्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। ‘याच याञ्चायाम्' धातु से ते प्रत्यय लगकर आत्मनेपदीय याचते रूप बनता है, जिसका अर्थ है-मांगना, याचना करना, निवेदन करना, प्रार्थना करना आदि। केशव ने उग्रसेन के पास जाकर अरिष्टनेमि के लिए सुरूपा राजीमती की ससम्मान याचना की।
'जायइ' क्रिया-व्यापार से केशव की इच्छा को मूर्त रूप मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है।
उत्तराध्ययन में वक्रोक्ति
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