________________
भिक्षु कौन होता है? इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण इस गाथा में हुआ है, जो क्रमशः विकास का सूचक है। जो बाह्य और आभ्यन्तर संयोगों से विमुक्त है, राग-द्वेष से मुक्त है वही अनगार हो सकता है-'आगारं घरं तं जस्स नत्थि सो अणगारो।' जो अनगार है, तपश्चर्या से युक्त है वही भिक्षु है और ऐसे भिक्षु के विनय का मैं प्रतिपादन कर रहा हूं। 'सुणेह' क्रिया से सर्वात्मना सुनने की बात प्रकट हो रही है।
देवदाणवगंधव्वा जक्खरक्खस्सकिन्नरा। बंभयारिं नमसंति दुक्करं जे करंति त।। उत्तर. १६/१६
उस ब्रह्मचारी को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर-ये सभी नमस्कार करते हैं, जो दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है।
'नम प्रह्वत्वे शब्दे च' धातु से निष्पन्न 'नमंसंति' क्रिया ब्रह्मचर्य के महत्त्व का प्रतिपादन कर रही है। नम् धातु का अर्थ है- नमस्कार करना, वन्दना करना, सम्मान देना, झुकना, अभिवादन करना (सम्मान सूचक लक्षण), अधीन होना आदि। यहां नम् धातु से केवल नमस्कार करना अर्थ ही नहीं है अपितु आदर देना, सम्मान देना, पूर्ण समर्पित हो जाना आदि अभिव्यंजित हैं क्योंकि कामदेव को अपने वश में करना महा दुष्कर है। जो इस कठिनतम कार्य को साधते हैं उन दमीश्वरों को देव, दानव, राक्षस सभी श्रद्धाप्रणत हो नमस्कार करते हैं, उनके विनय के वशीभूत हो जाते है यह तात्पर्य नमसंति क्रिया से प्रकट हो रहा है। देव, दानव आदि के द्वारा ब्रह्मचारी के ब्रह्मचर्य का तेज बढ़ाने में नमसंति क्रिया सहायक बनी है।
कणकुण्डगं चइत्ताणं विट्ठे भुंजइ सूयरे। एवं सीलं चइत्ताणं दुस्सीले रमई मिए।। उत्तर.१/५
जिस प्रकार सूअर चावलों की भूसी को छोड़कर विष्ठा खाता है, वैसे ही अज्ञानी भिक्षु शील को छोड़कर दुःशील में रमण करता है।
भुंजइ क्रिया से यहां सूअर का विष्ठा खाने में तन्मयत्व अभिव्यंजित हो रहा है। सूअर को अच्छे पदार्थ खाने के लिए मिल जाए पर उसे तो विष्ठा खाने में ही आनंद आता है, सुगंधित द्रव्यों में नहीं। सूअर के दृष्टान्त से कवि कहना चाहता है कि अज्ञानी सदाचार को छोड़कर दुराचार में रमण करने के लिए तत्पर होता है। पवित्र आचरण में अज्ञानी व्यक्ति की असमर्थता 'भुंजइ' क्रिया से परिलक्षित हुई है।
108
उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन ।
____Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org