SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वक्रोक्ति के भेद प्रभेद शब्द को व्यंजक बनानेवाला तत्त्व उक्ति की वक्रता या प्रयोग वैचित्र्य है। प्रसिद्ध काव्यशास्त्री कुन्तक ने वक्रोक्ति के मुख्य छः भेद व उनके अनेक प्रभेद किए हैं १. वर्णविन्यासवक्रता २. पदपूर्वार्धवक्रता १. रूढ़ि वैचित्र्यवक्रता,२.पर्यायवक्रता, ३. उपचारवक्रता, ४. विशेषणवक्रता, ५. संवृत्तिवक्रता, ६. वृत्तिवक्रता, ७. लिंग वैचित्र्यवक्रता, ८. क्रिया वैचित्र्यवक्रता ३. पद-परार्धवक्रता १.काल वैचित्र्यवक्रता, २.कारकवक्रता, ३. वचनवक्रता, ४. पुरुषवक्रता, ५. उपसर्गवक्रता, ६. प्रत्ययवक्रता, ७. उपसर्गवक्रता, ८. निपातवक्रता ४. वाक्यवक्रता ५. प्रकरणवक्रता-१. भावपूर्ण स्थिति की उद्भावना, २.प्रसंग की मौलिकता, ३. पूर्वप्रचलित प्रसंग में संशोधन, ४. रोचक प्रसंगों का विस्तृत वर्णन, ५.प्रधान उद्देश्य की सिद्धि के लिए अप्रधान प्रसंग की उद्भावना, ६. प्रसंगों का पूर्वापर क्रम से अन्वय आदि ६. प्रबन्धवक्रता - १. मूलरस परिवर्तनवक्रता, २. समापनवक्रता, ३. कथाविच्छेदवक्रता, ४. आनुषंगिकफलवक्रता, ५. नामकरणवक्रता, ६. तुल्यकथावक्रता वर्ण-विन्यास-वक्रता जिससे श्रुतिमाधुर्य की सृष्टि हो, रस का उत्कर्ष हो, वस्तु की प्रभविष्णुता, कोमलता, कठोरता, कर्कशता आदि की व्यंजना हो, शब्द और अर्थ में सामंजस्य स्थापित हो, भावविशेष पर जोर पड़े तथा अर्थ का विशदीकरण हो ऐसे वर्णों का प्रयोग वर्ण-विन्यास-वक्रता कहलाता है। वक्रोक्तिजीवितम् में इसका लक्षण बताया है उत्तराध्ययन में वक्रोक्ति 83 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy