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________________ एको द्वौ बहवो बध्यमानाः पुनः पुनः। स्वल्पान्तरिस्त्रधा सोक्ता वर्णविन्यासवक्रता॥ जहां एक, दो या बहुत से वर्ण थोड़े-थोड़े अन्तर से बार-बार ग्रथित होते हैं वहां वर्णविन्यास वक्रता-वर्ण-रचना की वक्रता होती है। इसके अन्तर्गत अनुप्रास, यमक आदि अलंकारों का समावेश होता है। उत्तराध्ययन में वर्ण विन्यास वक्रता । कडं कडे त्ति भासेज्जा अकडं नो कडे त्ति य|| उत्तर. १/११ सुकडे त्ति सुपक्के ति सुछिन्ने सुहडे मडे। सुणिट्ठिए सुलढे त्ति सावज वज्जए मुणी| उत्तर. १/३६ आसिमो भायरा दो वि अन्नमन्नवसाणुगा।। अन्नमन्नमणूरत्ता अन्नमन्नहिएसिणो| उत्तर. १३/५ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे। उत्तर. ६/१७ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवहुई। उत्तर. ८/१७ यहां 'कडं', 'सु', 'अणुत्तर', 'ह', 'अन्नमन्न' आदि शब्दों की अनेकशः आवृत्ति हुई है। 'मासे मासे' उत्तर. ९/४४ _ 'आलवंते लवंते वा' (१/२१) में वर्गों की स्वरूप एवं क्रम से एक बार आवृत्ति हुई है। सोच्चा, नच्चा, जिच्चा (उत्तर. २/१) तथा 'अदंसणं चेव अपत्थणं च अचिंतणं चेव अकित्तणं च' (उत्तर ३२/१५) यहां पद के अंत में वर्गों की आवृत्ति से सौन्दर्य का आधान हुआ है। इस प्रकार समय पर समय का अंकन करने के लिए 'काले कालं समायरे'। उत्तर, १/३१ जीवन की अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए क्षण-क्षण का मूल्य अभिव्यक्त करने ‘समयं गोयम मा पमायए'। १०/१ प्राप्त-अप्राप्त में हर्ष-विषाद रहित साधुत्व को लक्षित करने 84 ... उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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